________________
शासन सम्राट : जीवन परिचय.
के यहां भोजन के लिए जाते थे । माता पिता की अनुमति लेने के लिए उन्हें पुनः महुवा जाने की इच्छा न थी क्योंकि वे जानते थे कि उन्हें अनुमति नहीं मिलने वाली है । अतः वे द्विविधा में पड गए और कोई मध्यम मार्ग विचार रहे थे । ऐसे भी वे बुद्धिशाली थे । अतः उन्होंने एक निराला मार्ग सोचा । उपाश्रय में वृद्धिचंद्रजी महाराज के रत्नविजयजी नामक एक शिष्य थे वैयावच्च (हर प्रकार
सेवा करके) करके नेमचंदभाई ने उन्हें प्रसन्न कर लिया । तत्पश्चात " उनसे साधु के वस्त्र मांगे और समझाया कि गुरुमहाराज मुझे दीक्षा नहीं देते अतः स्वतः साधु के वस्त्र पहनना चाहता हूँ । इस संदर्भ में आप की कोई जिम्मेदारी नहीं हैं । ऐसा कहकर साधु के वस्त्र नेमचंदभाई ने पहन लिए किन्तु ओघा कहां से लाया जाय ? उपाश्रय में स्वर्गस्थ गच्छनायक श्री मूलचंदजी महाराज का ओघा संभालकर रखा गया था । वह ओघा नेमचंदभाई ने रत्नविजयजी से प्राप्त कर लिया । तत्पश्चात वे वृद्धिचंद्रजी महाराजके पास साधुवेश में आकर खडे होगए । वृद्धिचंद्रजी उन्हें देखकर चकित रह गए उन्होने पूछाः 'अरे नेमचंद तुझे दीक्षा किसने दी ? नेमचंदभाई ने कहा गुरुमहाराज मैंने स्वयं ही साधु-वेश पहन लिया है और वह अब मैं छोडनेवाला नहीं हूँ । अतः आप मुझे अब दीक्षा की विधि करवाइए । दीक्षा विधि :
वृद्धिचंद्रजी महाराज द्विधा में पड़ गए । परिस्थिति का अनुमान लगाते हुए उन्हें लगा कि अब दीक्षा कर लेना ही उचित