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___ इसी प्रकार कई लोगों को यह ज्ञात नहीं होता कि मेरी आत्मा औपपातिक (पुनर्जन्म करनेवाली है, अथवा पूर्व जन्म से आई) है अथवा मैं कौन था अथवा मैं यहाँ से च्युत होकर आयुष्य समाप्त होते ही (मरकर) आगामी लोक (परलोक) में क्या होऊँगा।५४ प्रत्यक्ष ज्ञानियों द्वारा कथित पूर्वजन्म-पुनर्जन्म वृत्तान्त
प्रत्यक्षज्ञानी तीर्थंकरों तथा उनके गणधरों विशेषत: श्री गौतमस्वामी, सुधर्मास्वामी आदि ने एवं पश्चाद्वर्ती ज्ञानी आचार्य एवं मुनिवरों ने अनेक शास्त्रों एवं ग्रंथों में पूर्वजन्म और पुनर्जन्म के अस्तित्व को सिद्ध करने वाले घटनाचक्रों का यत्र तत्र उल्लेख किया है।
भगवान महावीर के पूर्वभवों का उल्लेख सर्वप्रथम हमें आवश्यक नियुक्ति, विशेषावश्यकभाष्य, आवश्यकचूर्णी, आवश्यक हरिभद्रीयवृत्ति, आवश्यक मलयगिरि वृत्ति, चउपन्नमहापुरिसचरियं में मिलता है। कल्पसूत्र (आ. भद्रबाहु स्वामी) रचित टीकाओं में वर्णित भगवान महावीर स्वामी के तीर्थंकर भव से पूर्व २७ भवों का वर्णन पूर्वजन्म और पुनर्जन्म की मुँह बोलती कहानी है।५५ __भगवान पार्श्वनाथ के दस भवों का वर्णन भी कल्पसूत्र टीका, त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र आदि शास्त्रों एवं ग्रंथों में मिलता है। इसमें भगवान पार्श्वनाथ के साथ कई जन्मों तक जन्म मरण के रूप में कमठ की वैर परंपरा चालु रही। यह घटना चक्र भी पूर्वजन्म और पुनर्जन्म के अस्तित्व को असंदिग्ध रूप में उजागर करती है।५६ पार्श्वनाथ चरित्र में भी यही बात आयी है।५७
इसी प्रकार सती राजीमती के साथ अरिष्टनेमि तीर्थंकर का पिछले नौ जन्मों का स्नेह था। तीर्थंकर जन्म में उन्हें नौ जन्मों की स्मृति हुई। यह चरित्र भी पूर्वजन्म और पुनर्जन्म की सिद्धि की अभिव्यक्ति करता है५८ और भी ऋषभदेव, शांतिनाथ, मल्लिनाथ आदि तीर्थंकरों के पूर्व भवों का वर्णन पूर्वजन्म और पुनर्जन्म को स्वीकार करने को बाध्य करता है। त्रिषष्टिशलाकापुरुष में भी यही बात है।५९ ज्ञाताधर्म कथा में भी यही बात आयी है।६०
श्रमण भगवान महावीर स्वामी की अन्तिम देशना उत्तराध्ययनसूत्र में वर्णित कई अध्ययनों में पूर्वजन्म और पुनर्जन्म की स्मृति का उल्लेख स्पष्ट किया है। उत्तराध्ययन सूत्र का ९वॉ अध्ययन भी पूर्वजन्म और पुनर्जन्म का साक्षी है इसमें देवलोक से मनुष्य लोक में आये हुए नमिराजा का मोह उपशांत होने पर पूर्वजन्म के स्मरण का तथा अनुत्तर धर्म में स्वयं संबुद्ध होकर प्रव्रजित होने का स्पष्ट उल्लेख है।६१ . उत्तराध्ययन सूत्र का १४ वाँ अध्ययन इक्षुकार राजा का है यह अध्ययन पूर्वजन्म की सिद्धि के लिए पर्याप्त है। इस अध्ययन में भृगुपुरोहित के दोनों पुत्र को अपने पूर्वजन्म का