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________________ 77 द्वितीय प्रकरण आत्मा का अस्तित्व : कर्म अस्तित्व का परिचायक समग्र आस्तिक दर्शनों का केंद्र बिंदु आत्मा है। आत्मा को केंद्र मानकर ही यहाँ पर समस्त प्राणियों के सुख-दुःख, हानि-लाभ, जीवन-मरण, निन्दा - प्रशंसा, विकास -हास, उन्नति-अवनति, हित-अहित, आदि के कारणों पर विचार किया गया है। आत्मा की दृष्टि से ही कर्म, पुण्य-पाप, आस्रव, संवर, बंध, मोक्ष, हेय, ज्ञेय, उपादेय, शुद्धि, गुण, अवगुण तथा सम्यक्ज्ञान, मिथ्याज्ञान, सुदर्शन, कुदर्शन, सम्यक्चारित्र, कुचारित्र, सम्यक, असम्यक्, तप, त्याग, प्रत्याख्यान आदि विषयों के संबंध में गहन चिंतन मनन किया गया है। यद्यपि इन सबका मूल कर्ता-धर्ता स्वयं आत्मा है और कर्म के कारण ही आत्मा इन सब में प्रवृत्त होता है । आत्मा और कर्म का संबंध अनादिकाल से है। यही आत्मा की विभाव दशा है। आत्मा के राग-द्वेष, मोह, अज्ञान आदि भाव इन विभाव भावों की उत्पत्ति में निमित्त हैं । आत्मा के रागादि भावों के योग के निमित्त से कार्मणवर्गणा (परमाणु) आकर्षित होकर आत्मा के साथ प्रतिपल प्रतिक्षण संबंधित होती हैं। उन्हें कर्म की संज्ञा प्रदान की गई है जो स्थिति और रस को लेकर होती है । १ आत्मा एक चेतनावान पदार्थ है, चेतना उसका धर्म है । २ फिर भी वह अपने स्वरूप के प्रति अनभिज्ञ है, अनजान है। इसका कारण है कर्मों का सघन आवरण । कर्म पौदगलिक हैं, वह जड़ स्वरूप हैं। आत्मा प्रति समय अज्ञान एवं मोह के कारण रागद्वेष आदि भाव स्वयं कर रहा है, जिसमें कर्म का उदय निमित्त है और इन रागादि भावों के होने में कर्म के उदय के फल-स्वरूप बाह्य में शरीर, इन्द्रियाँ, मन, वचन, स्वजन, परिजन, भवन, वस्तुएँ एवं .परिस्थितियाँ आदि निमित्त भूत होती हैं । यही आत्मा की विभाव दशा है। उत्तराध्ययन३ सूत्र में और समयसार में भी कहा है कि, आत्मा ही कर्मों का कर्ता हैवही निरोध कर्ता और क्षय करता है । इसे दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि, अपने ही अभिन्न ज्ञानादि गुणों का वह कर्ता है - जिसमें किसी भी विजातीय द्रव्य का बाह्य निमित्त अपेक्षित नहीं है । यही निश्चय नय से कर्तापन है। यदि जीव परलक्ष्य का परित्याग कर पराधीनता से पराङ्मुख होकर अपने ही स्वभाव का परिचय करे, तो वह स्वभाव भाव उत्पन्न कर सकता है । जो शाश्वत और ध्रुव है 1
SR No.002299
Book TitleJain Darm Me Karmsiddhant Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhaktisheelashreeji
PublisherSanskrit Prakrit Bhasha Bhasha Vibhag
Publication Year2009
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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