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________________ 76 मीमांसा दर्शन में कर्म और पुनर्जन्म योगदर्शन में कर्म और पुनर्जन्म महाभारत में पूर्वजन्म और पुनर्जन्म मनुस्मृति में पुनर्जन्म के अस्तित्व की सिद्धि पूर्वजन्म के वैर विरोध की स्मृति से पुनर्जन्म की सिद्धि आत्मा की नित्यता से पूर्वजन्म और पुनर्जन्म की सिद्धि पाश्चात्य दार्शनिक ग्रंथों में पुनर्जन्म पूर्वजन्म और पुनर्जन्म मानव जाति के लिए आध्यात्मिक उपहार परामनोवैज्ञानिकों की दृष्टि से पुनर्जन्म और कर्म पुनर्जन्म आत्मा और कर्म के अस्तित्व की सिद्धि जी पुनर्जन्मों का ज्ञान एवं स्मरण प्रेमात्माओं का साक्षात् संपर्क : पुनर्जन्म की साक्षी जैन दर्शन की दृष्टि से प्रेतात्मा के लक्षण एवं स्वरूप प्रेतात्मा द्वारा प्रिय पात्र की अदृश्य सहायता फोटो द्वारा सूक्ष्म शरीर का अस्तित्व पुनर्जन्म सिद्धांत की उपयोगिता कर्म अस्तित्व का मुख्य कारण जगत वैचित्र्य बौद्ध दर्शन की दृष्टि से विसदृशता कारण कर्म कर्म अस्तित्व कब से कब तक ? तात्विक दृष्टि से कर्म और जीव का सादि और अनादि संबंध आत्मा अनादि है तो क्या कर्म भी अनादि हैं ? कर्म और आत्मा में पहले कौन ? दोनों के अनादि संबंध का अंत कैसे ? भव्य और अभव्य जीव का लक्षण, अभव्यजीव का कर्म के साथ अनादि अनंत संबंध भव्यजीव का कर्म के साथ संबंध अनादि सान्त संदर्भ-सूची ९२ ९२ ९२ ९३ ९३ ९३ ९४ ९५. ९६ ९७ ९८ ९९ १०० १०१ १०१ १०२ १०२ १०८ १०९ ११० १११ १११ ११३ ११४ ११४ ११४ ११६
SR No.002299
Book TitleJain Darm Me Karmsiddhant Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhaktisheelashreeji
PublisherSanskrit Prakrit Bhasha Bhasha Vibhag
Publication Year2009
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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