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________________ 75 ७८ ७८ ७८ ७९ ७९ ० ० ० V ० द्वितीय प्रकरण कर्म का अस्तित्व आत्मा का अस्तित्व : कर्म अस्तित्व का परिचायक इन्द्रभूति गौतम की आत्मा विषयक शंका और निराकरण ज्ञानगुण के द्वारा आत्मा का अस्तित्व जहाँ आत्मा वहाँ ज्ञानगुण शरीरादि भोक्ता के रूप में आत्मा के अस्तित्व की सिद्धि परलोक के रूप में आत्मा की सिद्धि शरीरस्थ सारथी के रूप में आत्मा के अस्तित्व की सिद्धि उपादान कारण के रूप में आत्मा की सिद्धि आगम प्रमाण से आत्मा के अस्तित्व की सिद्धि आत्मा का असाधरण गुण : चैतन्य जहाँ कर्म वहाँ संसार आत्मा की दो अवस्थाएँ संसारी (अशुद्ध) दशा का मुख्य कारण : कर्म कर्म अस्तित्व के मूलाधार : पूर्वजन्म और पुनर्जन्म पूर्वजन्म और पुनर्जन्म क्यों माने? पूर्वजन्म और पुनर्जन्म के समय शरीर नष्ट होता है आत्मा नहीं प्रत्यक्ष-ज्ञानियों द्वारा कथित पूर्वजन्म-पुनर्जन्म वृत्तान्त प्रत्यक्ष-ज्ञानियों और भारतीय मनीषियों द्वारा पुनर्जन्म की सिद्धि ऋग्वेद में कर्म और पुनर्जन्म का संकेत उपनिषदों में कर्म और पुनर्जन्म का उल्लेख भगवद्गीता में कर्म और पुनर्जन्म का संकेत बौद्ध दर्शन में कर्म और पुनर्जन्म न्याय-वैशेषिक दर्शन में कर्म और पुनर्जन्म अदृष्ट (कर्म के साथ ही) पूर्वजन्म-पुनर्जन्म का संबंध सांख्य दर्शन में कर्म और पुनर्जन्म . ० V V V V ० V V ० V ० V ० ० V ० V ९०, o ० or ९२
SR No.002299
Book TitleJain Darm Me Karmsiddhant Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhaktisheelashreeji
PublisherSanskrit Prakrit Bhasha Bhasha Vibhag
Publication Year2009
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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