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आगमों पर नियुक्ति, भाष्य, चूर्णि, टीका, वृत्ति, दीपिका, टब्बा आदि के नाम से विशाल साहित्य की रचना हुई है। नियुक्ति
व्याख्यामूलक साहित्य में नियुक्ति का स्थान सर्वोपरि है। सूत्र में जो अर्थ निश्चित किया हुआ है, जिसमें वह सन्निबद्ध हो, उसे नियुक्ति कहा गया है। आगमों पर आर्या छंद में जिसे गाथा कहा जाता है, वह प्राकृत भाषा में उपलब्ध है। विषय को भलिभाँति प्रतिपादित करने हेतु अनेक कथानकों, उदाहरणों तथा दृष्टांतों का प्रयोग किया जा रहा है, जिनका उल्लेखमात्र नियुक्तियों में मिलता है। इसलिए यह साहित्य इतना सांकेतिक और संक्षेप में है कि बिना व्याख्या या विवेचन को भलिभाँति समझा नहीं जा सकता। यह कारण है किटीकाकारों ने मूल आगम के साथ-साथ नियुक्तियों पर भी टीकायें रची हैं।
. ऐसा जान पडता है कि- प्राचीन गुरु परंपरा से प्राप्त पूर्व साहित्य के आधार पर हो नियुक्ति साहित्य की रचना की गई होगी। यह संक्षिप्त और पद्यबद्ध होने से इसे सरलता से कंठस्थ किया जा सकता है तथा धर्मोपदेश के समय इसे कथा आदि के उद्धरण दिये जा. सकते हैं।
आचारांगसूत्र, सूत्रकृतांग सूत्र, सूर्यप्रज्ञप्ति, व्यवहार सूत्र, दशाश्रुतस्कंध, उत्तराध्ययन सूत्र, दशवैकालिक सूत्र और आवश्यक सूत्र आदि पर नियुक्तियों की रचना की गई। परंपरा से इनके रचनाकार आचार्य भद्रबाहु माने जाते हैं। जो संभवत: छेदसूत्रों के रचयिता, अंतिम श्रुतकेवली आचार्य भद्रबाहु से भिन्न हैं।
___ नियुक्तियों में जैन सिद्धांत के तत्त्व, परंपरागत आचार, विचार, अनेक ऐतिहासिक तथा पौराणिक परंपरायें आदि का वर्णन है। नियुक्तियों में प्राय: अर्धमागधी प्राकृत का प्रयोग हुआ है। भाष्य
विद्वानों को नियुक्तियों द्वारा की गई व्याख्या संभवत: पर्याप्त न लगी हो। अत: उन्होंने भाष्यों के रूप में नये व्याख्या-ग्रंथ लिखे।
सूत्रार्थो वर्ण्यते यत्र पदैः सूत्रानुसारिभिः।
स्वपदानि च वर्ण्यन्ते भाष्यं भाष्यविदो विदु॥ . सूत्र के पदों के अनुसार जहाँ सूत्र के पदों का अर्थ का विवेचन होता है और उसके साथ स्व-अनुकूल रचना करते हैं उसे भाष्य के जानकार भाष्य कहते हैं। शिशुपालवध में महाकवि माघ ने एक स्थान पर भाष्य का विवेचन करते हुए लिखा है- संक्षिप्त किंतु अर्थ गरिमा या