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________________ 58 जिज्ञासा प्रस्तुत करती है कि, 'बत्तीस इन्द्र कौन कौन से हैं? कैसे हैं? कहाँ रहते हैं? किसकी स्थिति कितनी है, भवन याने कि विमान और परिग्रह कितना है? नगर कितने हैं? वहाँ के पृथ्वी की लंबाई-चौडाई कितनी है? उन विमानों का रंग कैसा है? आहार का काल कितना है? श्वासोच्छ्वास कैसा है? अवधिज्ञान का क्षेत्र कितना है आदि मुझे बताओ'। श्रावक उसका समाधान करते हुए देवताओं आदि का जो वर्णन करता है यही इस प्रकीर्णक का मुख्य विषय है। इसमें बत्तीस इन्द्रों पर प्रकाश डालने की बात कही है, किन्तु उससे अधिक इन्द्रों के संबंध में चर्चा की गई है। १०) वीरत्थओ (वीरस्तुति) प्रकीर्णक ___इस प्रकीर्णक के स्थान पर डॉ. मुनि नागराजजी तथा आचार्य देवेन्द्र मुनिजी महाराज ने मरणसमाधि प्रकीर्णक का उल्लेख किया है, जिसका विवेचन आगे किया जायेगा। आगम दीप प्रकाशन द्वारा प्रकाशित ४५ आगम की गुर्जर छाया में वीरत्थओ प्रकीर्णक लिया गया है। उसमें ४३ गाथाएँ हैं। प्रारंभ में वीर जिनेन्द्र को नमस्कार कर, उनके प्रकट नामों से उनकी स्तुति की गई है। जिसमें अरु, अरहंत, देव, जिन, वीर आदि अनेक नाम दिये हैं और ‘उन नामों की व्याख्या दी है। . अंत में लिखा है कि श्री वीर जिनेन्द्र की इस नामावली द्वारा मेरे जैसे मंदपुण्य ने स्तुति की है, हे जिनवर ! मुझपर कृपा करके मुझे पवित्र शिवपथ में स्थिर करो। ___ इस प्रकार दस प्रकीर्णकों के बाद छह छेद सूत्रों का विवेचन किया है, जिसमें से निशीथ सूत्र, बृहत्कल्प, व्यवहारसूत्र और दशाश्रुतस्कंध का तो विवेचन पहले किया जा चुका है। श्वेताम्बर मूर्तिपूजक संप्रदाय में जीयकप्पो और महानिसीह इन दो को भी छेदसूत्र में समाहित किया है। जिसका वर्णन आगे दिया जाएगा। पहले मरणसमाधि प्रकीर्णक का दिया जा रहा है। मरणसमाही (मरणसमाधि) . इसका दूसरा नाम मरणविभक्ति है। यह सबसे बड़ा प्रकीर्णक है १) मरणविभक्ति, २) मरणविशोधि, ३) मरणसमाधि, ४) संलेखनाश्रुत, ५) भत्तपरिज्ञा, ६) आतुर-प्रत्याख्यान, ७) महाप्रत्याख्यान, ८) आराधना। इन आठ प्राचीन श्रुत ग्रंथों के आधार पर प्रस्तुत प्रकीर्णक की रचना हुई है। शिष्य ने आचार्य से जिज्ञासा प्रस्तुत की कि भगवान समाधिमरण किस प्रकार प्राप्त होता है? आचार्य ने समाधान करने हेतु आलोचना, संलेखना, क्षमापना आदि चौदह द्वारों का विवेचन किया
SR No.002299
Book TitleJain Darm Me Karmsiddhant Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhaktisheelashreeji
PublisherSanskrit Prakrit Bhasha Bhasha Vibhag
Publication Year2009
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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