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________________ 53 जिनदासगणी महत्तर ने इस पर चूर्णि की रचना की। आचार्य हरिभद्र सूरि ने अध्ययनशील जिज्ञासु मुनियों को उद्दिष्ट कर टीका का सर्जन किया। टीका का नाम शिष्यहिता है, अर्थात् वह पढनेवाले शिष्यों या विद्यार्थियों के लिए बहुत लाभप्रद है। इस टीका में रचनाकार ने छह आवश्यकों का पैंतीस अध्ययनों में विवेचन किया है। वर्ण्य विषयों का हृदयंगम कराने हेतु टीकाकार ने प्राकृत एवं संस्कृत की अनेक प्राचीन कथाओं का समावेश किया है। आचार्य मलयगिरि ने भी इस पर टीका की रचना की। आचार्य माणिक्यशेखर सूरि ने इसकी नियुक्ति पर दीपिका लिखी। तिलकाचार्य ने भी इस पर लघुवृत्ति याने संक्षिप्त टीका की रचना की। इस पर इतने आचार्यों द्वारा टीकाओं की रचना से यह सिद्ध होता है कि इस सूत्र का साधकों के जीवन में अत्यंत महत्व माना जा रहा हैं। आगमों का यह संक्षेप में परिचय है। प्रकीर्णक आगम साहित्य ___ श्वेतांबर मूर्तिपूजक संप्रदाय में पैंतालीस आगम स्वीकृत हैं। श्वेतांबर स्थानकवासी . एवं तेरापंथी संप्रदाय द्वारा पूर्व में विवेचित ग्यारह अंग, बारह उपांग, चार छेद, चार मूल और एक आवश्यक। ऐसे बत्तीस आगम प्रामाणिक रूप से स्वीकार किये जाते हैं। इन्हीं बत्तीस आगमों को मूर्तिपूजक संप्रदाय भी मानते हैं किंतु वे मूलसूत्र में पिंडनियुक्ति- जिसका दूसरा नाम ओघनियुक्ति, छेदसूत्र में महानिशीथ, पंचकल्प और दस प्रकीर्णक ऐसे तेरह आगम और अधिक मानते हैं। ___नंदीसूत्र के टीकाकार आचार्य मलयगिरि ने लिखा है कि तीर्थंकर द्वारा उपदिष्ट श्रुत का अनुसरण करके श्रमण प्रकीर्णकों की रचना करते हैं। प्रकीर्णक का आशय इधर उधर बिखरी हुई सामग्री या विविध विषयों के संग्रह से है। श्रमण भगवान महावीर के तीर्थ में १४००० प्रकीर्णक माने जाते थे किंतु वर्तमान में इसकी संख्या दस हैं। वे इस प्रकार है १) चतुःशरण, २) आतुर प्रत्याख्यान, ३) महा-प्रत्याख्यान, ४) भक्तपरिज्ञा, ५) तंदुलवैचारिक, ६) संस्तारक, ७) गच्छाचार, ८) गणिविद्या, ९) देवेन्द्रस्तव, १०) मरणसमाधि अन्यत्र वीरत्थो नाम भी है। किंतु इन नामों में भी एकरूपता दिखाई नहीं देती है। कहीं ग्रंथों में मरणसमाधि और गच्छाचार के स्थान पर चन्द्रवेध्यक और वीरस्तव को गिना है तो, किन्ही ग्रंथों में देवेन्द्र स्तव
SR No.002299
Book TitleJain Darm Me Karmsiddhant Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhaktisheelashreeji
PublisherSanskrit Prakrit Bhasha Bhasha Vibhag
Publication Year2009
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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