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इस सूत्र के २० उद्देशक हैं। प्रत्येक उद्देशक में अनेक सूत्र हैं। सूत्रों पर नियुक्ति है, सूत्रों और नियुक्ति पर संघदासगणि का भाष्य है। सूत्र, नियुक्ति और भाष्य पर जिनदासगणी महत्तर ने चूर्णि की रचना की। ४) दशाश्रुतस्कंधसूत्र ___ यह चौथा छेदसूत्र हैं। इसको आचारदशा भी कहा जाता है। इसके रचयिता आचार्य भद्रबाहु माने जाते हैं। इस पर नियुक्ति प्राप्त होती है। जैसे बतलाया गया है- जैन परंपरा में भद्रबाहु नामक एकाधिक अनेक आचार्य हुए हैं। विद्वानों का ऐसा मंतव्य है कि- जिन भद्रबाहु ने छेदसूत्रों की रचना की। नियुक्तिकार भद्रबाहु इनसे भिन्न हैं।
दशाश्रुतस्कंध पर चूर्णि की भी रचना हुई। ब्रह्मर्षी पार्श्वचंद्रीय ने वृत्ति या टीका की रचना की। इस ग्रंथ में दस विभाग हैं। आठवें और दशवें विभाग को अध्ययन कहा गया है
और बाकी के विभागों को दशा कहा गया है। इनमें असमाधि के स्थानों की चर्चा की गई है। अनाचरण, रात्रिभोजन, राजपिंडग्रहण आदि का वर्णन किया गया है। उनमें और दो सौ प्रायश्चितों का वर्णन है। आठ प्रकार की गणि संपदाओं या गणाधिपति आचार्य के व्यक्तित्व की विशेषताओं का वर्णन किया गया है। जैसे आचार संपदा, श्रुतसंपदा, शरीरसंपदा, वचनसंपदा, वाचना संपदा, मतिसंपदा, प्रयोग मतिसंपदा तथा संग्रह संपदा।९२
भगवान महावीर के जन्म, दीक्षा, केवलज्ञान तथा मोक्ष का वर्णन विस्तार से है। एक प्रसंग में महामोहनीय कर्मबंध के तीस स्थानों का प्रतिपादन हैं।
इस प्रकार साधु जीवन में आशंकित दोष, उनका निराकरण, उनकी आलोचना प्रायश्चित इत्यादि के साथ साथ जैन आचार विद्याओं और मर्यादाओं का विभिन्न प्रसंगों में बडा विशद विवेचन हुआ है।
आवश्यकसूत्र . आवश्यक शब्द अवस्य से बना है। जहाँ किसी कार्य को किये बिना रहना उचित नहीं माना जाता। किसी भी स्थिति में टाला नहीं जाता। उसे अवश्य किया जाता है। आवश्यकसूत्र में साधुओं को करणीय छह आवश्यक क्रिया/अनुष्ठानों या नित्य कर्मों का विवेचन है। सामायिक, चतुर्विशंतिस्तव, वंदना, प्रतिक्रमण, कार्योत्सर्ग एवं प्रत्याख्यान ये छह आवश्यक, अवश्य करणीय अनुष्ठान हैं।
आचार्य हरिभद्र ने इस पर नियुक्ति का प्रणयन (रचना) की है। इस पर आचार्य जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण गणि ने विशेषावश्यक भाष्य की रचना की, जो तत्त्व एवं आचार विषयक सिद्धांतों के निरूपण की दृष्टि से जैन साहित्य में बहुत ही प्रसिद्ध है।