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________________ प्रविष्ट और अंग बाह्य के रूप में उनके दो भेद बतलाये गये हैं। अंग प्रविष्ट भी आगम कहलाते हैं, जो गणधर द्वारा संकलित या प्रणीत हैं। अंग बाह्य उन शास्त्रों या ग्रंथों का नाम है जो स्थविर मुनिवृंद द्वारा रचित हैं। जिनदासगणि महत्तर ने इस पर चूर्णि तथा आचार्य हरिभद्र एवं मलयगिरि ने टीकाओं की रचना की है। ४) अनुयोगद्वार यह सूत्र आचार्य आर्य रक्षित द्वारा रचा गया, ऐसी मान्यता है। भाषा का प्रयोग तथा विषयों के प्रतिपादन आदि की अपेक्षा से यह सूत्र काफी अर्वाचीन प्रतीत होता है। प्रश्नोत्तर की शैली में इसमें नय, निक्षेप, अनुगम, संख्यात, असंख्यात, पल्योपम, सागरोपम एवं अनंत आदि का वर्णन है। इसमें काव्यशास्त्र निरूपित नौ रस उनके उदाहरण, संगीत संबंधी स्वर, उनके लक्षण, ग्राम एवं मूर्च्छना आदि का विवेचन है। इसमें जैनेतर मतवादियों की भी चर्चा है। व्याकरण संबंधित धातु, समास, तद्धित तथा नियुक्ति-व्युत्पत्ति आदि का विस्तार से विवेचन किया गया है। विभिन्न प्रकार के कर्मकरों या व्यवसायों तथा शिल्पियों की भी चर्चा है। ___ इस सूत्र पर जिनदास महत्तर ने चूर्णिका की रचना की आचार्य हरिभद्र तथा मलधारी हेमचंद्र ने टीकाओं की रचना की। चार छेदसूत्र : परिचय सबसे पहले 'छेदसूत्र' इस शब्द का प्रयोग आवश्यक नियुक्ति इसमें मिलता है।८७ इसमें पहले के कोई भी प्राचीन साहित्य में छेदसूत्र' नाम नहीं आया। इसके बाद आचार्य जिनभद्रगणि क्षमाक्षमण इन्होंने विशेषावश्यक भाष्य में८८ इसी प्रकार संघदासगणिने निशीथभाष्य८९ इस ग्रंथ में ध्येय सूत्र का उल्लेख किया है।९० छेदसूत्र जैन आगमों का प्राचीनतम भाग है। अत: अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। इन सूत्रों में साधु-साध्वियों के प्रायश्चित के विधि विधानों का प्रतिपादन है। यह सूत्र चारित्र की शुद्धि स्थिर रखने में हेतु भूत हैं। इसलिए इसे उत्तमश्रुत कहा जाता है। इन सूत्रों में साधु-साध्वियों के आचार, विचार संबंधी नियमों का वर्णन है। जिनके नियमों का भगवान महावीर ने और उनके शिष्यों ने देश काल की स्थितियों के अनुसार साधु संघ के लिए निश्चित-निर्धारित किया था। बौद्ध धर्म के तीन पिटकों में पहले विनय पिटक के साथ इनकी तुलना की जा सकती है, बौद्धधर्म में जैसा पहले संकेत किया गया है, विनय शब्द आचार या चारित्र के अर्थ में है। वहाँ भिक्षुओं के नियमोपनियम वर्णित हैं।
SR No.002299
Book TitleJain Darm Me Karmsiddhant Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhaktisheelashreeji
PublisherSanskrit Prakrit Bhasha Bhasha Vibhag
Publication Year2009
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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