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.. निरयावलिका सूत्र में दस अध्ययन हैं। पहले अध्ययन में कोणिक-अजातशत्रु का जन्म, बडे होने पर उसके द्वारा अपने पिता श्रेणिक को कारागृह में डालना, स्वयं राजसिंहासन पर बैठना, श्रेणिक द्वारा आत्महत्या, कोणिक और वैशाली गणराज्य के अध्यक्ष, चेटक के संग्राम आदि का वर्णन है। ९) कल्पावतंसिका
यह अंतगडदशांग सूत्र का उपांग है। कल्पावतंसिका में दस अध्ययन हैं। इसमें राजा कोणिक के दस पुत्रों का वर्णन है। जिन्होंने दीक्षा ग्रहण की। उग्र संयमाराधना द्वारा अंतिम समय में पंडितमरण द्वारा देवलोक में गये।
श्रेणिक कषाय के कारण नरक में जाते हैं, उनके पुत्र सत्कर्म से देवलोक में जाते हैं। उत्थान-पतन का आधार मानव के स्वयं के कर्मों पर ही निर्भर है। मानव साधना से भगवान बन सकता है और विराधना से नरक का कीडा भी बन सकता है। १०) पुष्पिका
__इसमें दस अध्ययन हैं। प्रथम और द्वितीय अध्ययन में चंद्र और सूर्य का वर्णन है। तृतीय अध्ययन में सोमिल ब्राह्मण का कथानक है। इस ब्राह्मण ने वानप्रस्थ तापसों की दीक्षा अंगीकार की थी। वह दिशाओं की पूजा करता था। तथा अपनी भुजायें ऊपर उठाकर सूर्य की आतापना लेता था। चौथे अध्ययन में सुभद्रा नामक आर्यिका का वर्णन है। ११) पुष्पचूलिका
यह प्रश्न व्याकरण का उपांग है। इस उपांग में भी श्रीं, हीं, घृति, कीर्ति, बुद्धि, लक्ष्मी, इला, सुरा, रस और गंध देवी आदि दस अध्ययन हैं। इसमें भगवान पार्श्वनाथ की परंपरा में दीक्षित श्रमणियों की चर्चा है। ऐतिहासिक दृष्टि से इसमें भगवान पार्श्वनाथ के युग की साध्वियों का वर्णन है। १२) वृष्णिदशा
इसमें बारह अध्ययन हैं। पहले अध्ययन में द्वारिकानगरी तथा कृष्ण वासुदेव का वर्णन है। बावीसवे तीर्थंकर भगवान अरिष्ठनेमि संबंधी विवेचन भी इसमें है। जब भगवान अरिष्ठनेमि विचरण करते हुए रैवतक पर्वत पर आये। कृष्ण-वासुदेव गजारूढ होकर दलबल सहित दर्शन हेतु गये। वृष्णिवंश-यादववंश के बारह कुमारों ने भगवान अरिष्ठनेमि के पास श्रमण दीक्षा ग्रहण की। चार मूलसूत्र : परिचय
उपांग, छेद, मूल आदि अंगों से संबंध है। मुख्य रूप से अंगों में जैन धर्म के सिद्धांत,