________________
.
44
३) जीवाजीवाभिगमसूत्र
यह तीसरा उपांग है। इसमें गणधर गौतम और भगवान महावीर के प्रश्नोत्तरों के रूप में जीव एवं अजीव तत्त्वों के भेद-प्रभेदों का अभिगम-विस्तृत विवेचन है। इस सूत्र में नौ प्रकरण या प्रतिपातियाँ हैं जिनमें २७२ सूत्र हैं।
तृतीय प्रकरण सबसे विस्तृत है। उसमें द्वीपों, सागरों का वर्णन है। रत्न, अस्त्र, धातु मध, पात्र, आभूषण, भवन, मिष्टान्न, दास, पर्व जन्य त्यौहार, उत्सव, यान आदि का वर्णन
. आचार्य मलयगिरिने इस पर टीकाकी रचना की। आचार्य हरिभद्रसूरि और आचार्य देवसूरि ने इस पर लघुवृत्तियों की रचना की। ४) प्रज्ञापनासूत्र
यह चौथा उपांग है। प्रज्ञापना का अर्थ विशेष रूप में ज्ञापित करना, ज्ञान करना या समझाना है। इसमें ३४९ सूत्र हैं। जिनमें प्रज्ञापना, स्थान, लेश्या, समुद्घात आदि छत्तीस पदों का विवेचन है। गणधर गौतम ने प्रश्न किये हैं और भगवान महावीर ने उत्तर दिये हैं।
अंग सूत्रों में जिस प्रकार व्याख्याप्रज्ञप्ति सूत्र सबसे विशाल है उसी प्रकार उपांग सूत्रों में प्रज्ञापना सूत्र सबसे बडा हैं। इसकी रचना वाचक वंशीय पूर्वधारी आर्य श्याम ने की। ऐसा माना जाता है कि वे सुधर्मा स्वामी की तेइसवीं पीढी में हुए। आचार्य हरिभद्रसूरि ने इस विषम- कडे पदों की व्याख्या करते हुए प्रदेश व्याख्या नामक लघु वृत्ति की रचना की। इसके आधार पर आचार्य मलयगिरि ने टीका लिखी। इसके पहले पद में पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, वृक्ष, बीज, गुच्छ, लता, तृण, कमल, कंद, मूल, मगर, मत्स्य, सर्प, पशु, पक्षी आदि का वर्णन है। इसमें आर्य देश, जाति, आर्य कुल तथा शिल्प आर्य आदि का उल्लेख है। ब्राह्मी, खरोष्टी आदि लिपियों की भी चर्चा है।
प्रज्ञापनासूत्र में कषाय और उसके प्रकार कषाय की उत्पत्ति के चार-चार कारण कषाय के भेद-प्रभेद १) कषायों से अष्ट कर्म प्रकृतियों की प्ररूपणा, २) मूल और उत्तर प्रकृतियों के भेद प्रभेदों की प्ररूपणा, ३) आठ कर्म प्रकृतियों का स्वरूप, ४) कति स्थान कर्मबंध द्वार। ५) जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति
यह पाँचवाँ उपांग है। यह पूर्वार्ध उत्तरार्ध इन दो भागों में विभक्त है। पूर्वार्ध में चार तथा उत्तरार्ध में तीन वक्षष्कार हैं। वे १७६ सूत्रों में विभक्त हैं। पहले वक्षष्कार में जंबूद्वीप में