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मूलसूत्र इस प्रकार कुल १३ सूत्र इसमें आते हैं। ३) गणितानुयोग
इसमें सूर्य, चंद्र, नक्षत्र, भूगोल, खगोल आदि विषयों का तथा ग्रह, गतियों आदि से संबंधित गणनाओं पर विचार किया गया है। इसमें गणित की प्रधानता है। मुनिश्री महेन्द्रकुमारजी द्वितीय ने 'विश्वप्रहेलिका' नामक पुस्तक में विज्ञान, पाश्चात्य दर्शन एवं जैन दर्शन के आलोक में विश्व की वास्तविकता, आयतन व आयु की मीमांसा के अन्तर्गत दिगंबर एवं श्वेतांबर परंपरा की मान्यता के अनुसार जो गणितिक विवेचन किया है, उससे गणितानुयोग को समझने में बडी सहायता मिलती है।६८ इसके अन्तर्गत जंबूद्वीपप्रज्ञप्ति, चंद्र प्रज्ञप्ति तथा सूर्य प्रज्ञप्ति ये तीन उपांग सूत्र समाविष्ट हैं। ४) द्रव्यानुयोग
इसमें जीव, अजीव आदि छह द्रव्यों और नौ तत्त्वों का कहीं विस्तार से कहीं संक्षेप में वर्णन किया गया है। बत्तीस आगमों को इन चार अनुयोगों की दृष्टि से श्रेणिगत किया जाय तो चरणकरणानुयोग के अर्न्तगत सूत्रकृतांग, स्थानांग, समवायांग, व्याख्याप्रज्ञप्ति ये चार अंगसूत्र, जीवाजीवाभिगम, प्रज्ञापना, ये दो उपांग सूत्र एवं नंदी और अनुयोग द्वार ये दो मूलसूत्र ये कुल मिलाकर आठ सूत्र समाविष्ट हैं।
यह उपरोक्त वर्गीकरण विषय सादृश्य की दृष्टि से हुआ है, परंतु निश्चित रूप से यह कहा नहीं जा सकता कि अन्य आगमों में अन्य अनुयोगों का वर्णन नहीं है। उदाहरणार्थ उत्तराध्ययन सूत्र में धर्मकथा के साथ-साथ दार्शनिक तथ्यों का भी विवेचन है। भगवती सूत्र तो अनेक विषयों का महासागर है। आचारांग सूत्र में भी अलग-अलग विषयों की चर्चा है। कुछ आगमों में चारों अनुयोगों का संमिश्रण देखा जा सकता है। इन चारों अनुयोगों में सम्यक्दर्शन, सम्यक्ज्ञान तथा सम्यक्चारित्र रूप मोक्षमार्ग का विविध स्थानों पर कहीं संक्षेप में कहीं विस्तारपूर्वक विषद विवेचन हुआ है। यह कार्य आगमों की व्यवस्था को सरल बनाने हेतु आर्यरक्षित द्वारा वि. स. १२२ के आसपास सम्पन्न हुआ।६९ विशेषावश्यक भाष्य७० और दशवकालिक नियुक्ति७१ में भी कहा है। अंग आगम परिचय
मानव के शरीर में भिन्न-भिन्न अंग उपांग होते हैं। उन सबके समवाय को जीवन कहा ‘जाता है। प्रत्येक अंग का अपना अपना कार्य होता है। वैसे ही ज्ञानी पुरुषों ने आगम पुरुष की कल्पना की है।
जैन आगम साहित्य को अंग, उपांग, मूल, छेद आदि को भिन्न-भिन्न रूप में स्वीकार