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प्रगति करनी चाहिए। दूसरे शब्दों में कहें तो दोष का परिहार और गुणों का स्वीकार यह मानव का सच्चा कर्तव्य है। यह प्रवृत्ति मानव को परमसुख और शांति देगी।
प्रत्येक साधक को विवेकपूर्वक प्रवृत्ति करनी चाहिए। इसका मार्गदर्शन वीतराग परमात्मा भगवान महावीर ने बारंबार किया है, क्योंकि मानव मन की चंचलता का माप निकालना बहुत कठिन है इसलिए भगवान महावीर ने सभी साधकों को मन पर अंकुश रखने के लिए विजय मिलाने के लिए बारंबार निर्देश किया है।
"कर्मों से सर्वथा मुक्ति मोक्ष'। इस षष्ठम प्रकरण में कर्म प्रवेश जीव में कैसे होता है? आस्रव की व्याख्याएँ, आस्रव के लक्षण, पुण्यास्रव और पापास्त्रव, द्रव्यास्त्रव और भावात्रव, ईर्यापथिक और सांपरायिक आस्रव, आस्रव के पाँच भेद इत्यादि विषयों का समाधान किया गया है।
___ कर्म प्रायोग्य पुद्गल परमाणु सारे आकाश प्रदेश में ठसाठस भरे हैं, जीव के आसपास फैले हुए हैं, वे घुमते रहते हैं, कर्म उसी जीव में प्रवेश करते हैं जहाँ रागद्वेष या कषाय की स्निग्धता हो अथवा जहाँ मिथ्यात्व, अव्रत, प्रमाद, कषाय और योग आदि पाँचों आस्त्रव द्वारों में से कोई भी द्वार खुला होगा तो कर्म का आगमन होगा तो यह आस्रव है। आस्रव द्वारों में से कोई भी द्वार खुला होगा तो कर्म का आगमन होगा यह आस्रव है।
जैसे समुद्र चारों ओर से खुला रहता है जिससे जल से परिपूर्ण नदियाँ उसमें प्रविष्ट होती हैं, इसी प्रकार संसारी आत्मारूपी समुद्र में चारों ओर से कर्मरूपी जल आने के द्वार खुले हों तो मिथ्यात्व, अविरती, प्रमाद, कषाय और योगादि पाँचों आस्रव स्रोतों से कर्मों का आगमन निश्चित होगा। इसलिए भगवान महावीर ने समस्त संसारी जीवों को सावधान करते हुए कहा है- तीनों लोक में सभी दिशाओं से कर्मों के स्रोतों का आगमन होता है। रागद्वेषादि या आसक्ति घृणादिरूप भावकर्म भवरजाल रूप हैं, इन्हें सम्यक् प्रकार से निरीक्षण करके साधक को इन कर्मस्रवों से निवृत्त होना चाहिए।
जीव का परिणमन दो प्रकार का होता है- शुभ और अशुभ। शुभभाव- पुण्यात्रव और अशुभभाव- पापात्रव। जिस जीव में प्रशस्त भाव है, अनुकंपायुक्त परिणाम है और चित्त की कलुषता का अभाव है उस जीव को पुण्यास्रव का बंध होता है, इससे विपरीत
आचरण वाले जीवों को पापात्रव का बंध होता है। . वास्तव में मिथ्यात्व, अव्रत, प्रमाद, कषाय और अशुभयोग, इन पाँचों पापों का त्याग करना ही पुण्यास्त्रव है। वैसे तो भगवान महावीर ने पुण्यास्रव और पापास्त्रव की