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________________ 371 दर्शन मोहनीयकर्म की तीन प्रकृतियाँ, चारित्र मोहनीयकर्म के दो भेद, कषायचारित्रमोहनीयकर्म की १६ प्रकृतियाँ नौ कषाय चारित्र मोहनीयकर्म की ९ प्रकृतियाँ हैं। मोहनीय कर्म सम्यक्त्व और चारित्र गुणों का घात करनेवाला कर्म मोहनीय कर्म है। मोहनीयकर्म का स्वभाव मदिरा जैसा है, जिस प्रकार मदिरा जीव को बेभान कर देती है, उसी प्रकार मोहनीयकर्म जीव के विवेक को नष्ट कर देता है। मोहनीयकर्म के दो भेद : १) दर्शन मोहनीयकर्म, २) चारित्र मोहनीय। मोहनीयकर्म ६ प्रकारे बाँधा जाता है और पाँच प्रकार से भोगा जाता है। आयुष्यकर्म - आयुष्यकर्म का निरूपण, आयुष्यकर्म का विस्तार, आयुष्यकर्म १६ प्रकारे बाँधे और चार प्रकार से भोगे जाते हैं। आयुष्यकर्म का प्रभाव आदि विषयों का विवेचन इस प्रकरण में है। जो कर्म जीव को किसी गति विशेष में, शरीर विशेष से बाँधे रखता है, उसे आयुष्यकर्म कहते हैं। जिससे जन्म होता है वह आयुष्यकर्म है। आयुष्यकर्म का स्वभाव हथकडी के समान है, जिस प्रकार हथकडियाँ सजा की अवधि तक बाँधे रखती है, उसी प्रकार आयुकर्म भी आयुष्य की समाप्ति तक जीव को शरीर विशेष से बाँधकर रखता है। आयुष्यकर्म चार प्रकार से बाँधा जाता है और उसका फल १६ प्रकार से भोगा जाता है। नामकर्म . जिस कर्म से जीव के शरीर की निर्मिति होती है, वह नामकर्म है। जिससे विशिष्ट गति, जाति आदि की प्राप्ति होती है, उसे नामकर्म कहते हैं। नामकर्म का स्वभाव चित्रकार के समान है। जिस प्रकार चित्रकार अनेक आकार बनाता है उसी प्रकार यह कर्म, मनुष्य, तिर्यंच आदि शरीर बनाता है। नामकर्म के दो भेद - १) शुभनामकर्म, २) अशुभनामकर्म । शुभनामकर्म बंध चार प्रकार से होता है और १४ प्रकार से भोगा जाता है। अशुभनामकर्म चार प्रकार से बांधा जाता है और चौदह प्रकार से भोगा जाता है। , नामकर्म का निरूपण, नामकर्म का विस्तार, नामकर्म आठ प्रकार से बाँधा जाता है। नामकर्म २८ प्रकार से भोगा जाता है, नामकर्म का प्रभाव । गोत्रकर्म गोत्रकर्म का निरूपण, गोत्रकर्म की १६ प्रकृतियाँ, गोत्रकर्म १६ प्रकार से भोगें तथा
SR No.002299
Book TitleJain Darm Me Karmsiddhant Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhaktisheelashreeji
PublisherSanskrit Prakrit Bhasha Bhasha Vibhag
Publication Year2009
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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