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________________ 359 एक आत्मतत्त्व को जान लेने पर सब कुछ जाना जाता है। भारतीय दर्शन में आत्मा के महत्त्व को सदैव स्वीकार किया है। यद्यपि आज विज्ञान युग है और प्रचुर भौतिक सुखसुविधायें उपलब्ध हैं, फिर भी आध्यात्मिक प्रगति के बिना मानव को सुख नहीं मिलेगा। ऐसा कहा जाता है, व्यक्ति जब अपूर्णता से पूर्णता की ओर बढता है, तब उसे अलौकिक आनंद की अनुभूति होने लगती है, परंतु दु:ख निवृत्त के लिए ज्ञान, दर्शन, चारित्र इन रत्नों की आराधना से जीवात्मा अंतिम लक्ष को प्राप्त कर सकती हैं। सच्चे आत्मस्वरूप की पहचान के लिए कर्मसिद्धांत को समझना तथा कर्म के जंजीरों से मुक्त होने का उपाय बताया है। ___ ज्ञान, शक्ति पुरुषार्थ और संकल्प शक्ति ये जीव की मुख्य शक्तियाँ हैं। जीवात्मा जैसा विचार करता है वैसा उस पर संस्कार होता है और संस्कारों की छाप जन्मोजन्म तक रहती है। जीव अनंतज्ञान, अनंतदर्शन, अनंतसुख, अनंतबलवीर्य इस अनंत चतुष्टय से युक्त है। सभी जीवों के आत्मा में अनंत शक्ति विद्यमान है सिर्फ उस शक्ति को पहचानकर उसका सदुपयोग करना है। विसर्जन से सर्जन भव्य प्रासाद को बनाने के लिए पूर्व स्थित खंडहर को गिराना होगा, जब तक खंडहर का सर्वथा विनाश नहीं होगा तब तक भव्य महल का निर्माण नहीं हो सकेगा। ठीक यही बात जीवन के सर्जन के विषय में है। भव्य जीवन का निर्माण करने के लिए क्रोध, मान, माया, लोभ, राग और द्वेष इन षड्रिपु और अष्ट कर्मरूपी विकृतियों को बिल्कुल साफ करना होगा, जब तक अष्टकर्म क्षय नहीं होगें तबतक भव्य जीवन का सर्जन नहीं हो सकता, तथा मोक्ष मंजिल प्राप्त नहीं हो सकती। गंदगी को साफ किये बिना कमरा सजाया नहीं जाता, सजावट के लिए गंदगी को दूर करना आवश्यक है। इसी प्रकार अध्यात्म जीवनोत्कर्ष के लिए कर्मरूपी गंदगी को हटाना ही होगा। वर्तमान युग में दृश्यमान जगत का मानव कर्मों की गंदगी से भरा हुआ है। उस गंदगी को हटाये बिना वह ऊपरी टीपटाप से अर्थात् भौतिक समृद्धि से अपने जीवन को सजाने का प्रयास कर रहा है, किंतु यह सजावट वास्तविक न होने से सुख प्राप्ति का कारण नहीं बन पाती। वास्तविक, शाश्वत सुख प्राप्ति के लिए कर्म के मर्म को समझना आवश्यक है। कर्म एक ऐसी शक्ति है जिसका सदुपयोग भी हो सकता है और दुरुपयोग भी हो सकता है। अणुबंब से संसार के भौतिक साधनों का विकास होता है और दुरुपयोग से शत्रुओं का विनाश होता है। वाहन चालक व्यवस्थित हो तो व्यक्ति को गन्तव्य स्थान पर पहुँचा सकता है। वही वाहन चालक अनियंत्रित रूप से चलाये तो घातक भी बन जाता है।
SR No.002299
Book TitleJain Darm Me Karmsiddhant Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhaktisheelashreeji
PublisherSanskrit Prakrit Bhasha Bhasha Vibhag
Publication Year2009
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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