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___ दिगंबर परंपरा में षखंडागम का विशेष महत्त्व है। धरसेन नामक आचार्य से, जिन्हें आंशिक रूप में पूर्वो का ज्ञान था, विद्याध्ययन कर भूतबली और पुष्पदंत नामक मुनिद्वय ने षटखण्डागम की रचना की। इसके छह भाग हैं, इसलिए इसे षट्खंडागम कहा जाता है। इसमें जीव तत्त्व, कर्म सिद्धांत इत्यादि का बडा विस्तृत विवेचन है।
वीरसेन नामक आचार्य ने इस पर 'धवला नामक' टीका की रचना की। इसमें संस्कृत और प्राकृत का मिश्रित रूप में प्रयोग है, जिसे मणि-प्रवाल न्यायमूलक शैली कहा जाता है। जैसे मणियों और प्रवाल को एक साथ मिला दिया जाये तो भी वे पृथक् -पृथक् दृष्टि गोचर होते हैं, उसी प्रकार इस रचना-शैली में संस्कृत और प्राकृत अलग-अलग दिखाई पडती है। . दिगंबर परंपरा में आचार्य कुंदकुंद का भी बड़ा महत्वपूर्ण स्थान है। उन्होंने समयसार, प्रवचनसार, पंचास्तिकाय तथा नियमसार आदि ग्रंथों की रचना की, जो आगम तुल्य माने जाते हैं। उनमें निश्चयनय और शुद्धोपयोग की दृष्टि से अध्यात्म तत्त्व का बहुत ही सूक्ष्म विवेचन है। जैन धर्म की सार्वजनीनता
. जैनधर्म जन्म, जाति, वर्ण, वर्ग, रंग, लिंग, देश आदि की संकीर्ण सीमाओं से प्रतिबद्ध नहीं है। वह आकाश की तरह व्यापक और समुद्र की तरह विशाल तथा गंभीर है। उत्तराध्ययन सूत्र में कहा गया है- कर्म से ब्राह्मण होता है, कर्म से क्षत्रिय होता है, कर्म से वैश्य होता है
और कर्म से ही शूद्र होता है। २२ . भगवान महावीर ने जन्मगत जातिवाद के विरुद्ध एक बहुत बडी क्रांति की। 'एकैव मानुषी जातिरन्यत् सर्व प्रपंचनम्' मनुष्य जाति एक है। उसमें भेद करना प्रपंच मात्र है वास्तविकता नहीं है। भगवान महावीर के सिद्धांतों में मानवीय एकता का यह सूत्र फलित था। भगवान महावीर के साधु संघ में सभी जातियों के व्यक्ति सम्मिलित थे। वहाँ साधु संघ में प्रविष्ट होने का आधार वैराग्य, त्याग और संयम था। भगवान महावीर क्षत्रिय जाति के थे। उनके प्रमुख शिष्य ग्यारह गणधर, जो उनके श्रमण संघ के अंतर्गत भिन्न-भिन्न साधु समुदायों के संचालक थे, ब्राह्मण जाति के थे। वेद, वेदान्त के बडे विद्वान थे। भगवान महावीर से प्रभावित होकर उन्होंने जैन दीक्षा स्वीकार की।
भगवान महावीर के साधु संघ में अछूतों के लिए भी प्रवेश पाने का द्वार खुला था। उत्तराध्ययन सूत्र में हरिकेशी मुनि का एक प्रसंग है, जो जाति से चाण्डाल थे। 'ये श्वपाक पुत्र चाण्डाल कुलोत्पन्न हरिकेशी मुनि हैं, जिनकी तपश्चर्या की विशेषता साक्षात् दिखाई