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आत्मकल्याण के साथ-साथ जन कल्याण में भी निरत रहता है।
श्रमण शब्द की यह सामान्य रूप से शाब्दिक व्याख्या है। बौद्ध धर्म और जैन धर्म दोनों परंपराएँ श्रमण संस्कृति में समाविष्ट हैं। श्रमण संस्कृति कर्मवाद पर आधारित है। जो पवित्र और श्रेष्ठ कर्म करता है वही उच्च है। जो हिंसा, निर्दयता, लोभ आदि में अशुभ कर्मों से संलग्न रहता है, वह नीच है। बौद्ध धर्म
महात्मा बुद्ध ने भी ऐसा कहा है कि- 'जो व्रत युक्त है, सत्यभाषी है, इच्छा और लोभ से रहित है, जो छोटे बडे पापों का शमन करता है वह श्रमण है।१२
बौद्ध धर्म संसार के प्रमुख धर्मों में है। इस धर्म का भारत के बाहर के देशों में भी प्रचार है। भगवान बुद्ध ने इसका उपदेश दिया, जो भगवान महावीर के समकालीन थे। बौद्ध धर्म में ऐसा माना जाता है कि उनसे पूर्व भी अनेक बुद्ध हुए हैं। इतिहासकार प्राय: भगवान बुद्ध को ही बौद्ध धर्म का प्रवर्तक मानते हैं। बौद्ध धर्म में चार आर्य सत्य स्वीकार किये हैं। १) दुःख है, २) दु:ख का कारण है, ३) दु:ख का निरोध किया जा सकता है, ४) दु:ख के निरोध का मार्ग है।१३
बुद्ध ने मध्यम मार्ग को स्वीकार किया । अत्यंत त्याग और अत्यंत भोग के बीच के मार्ग को लेकर उन्होंने धर्म के सिद्धांतों का प्रसार किया। बौद्ध धर्म के सर्वाधिक मान्य शास्त्र पिटक कहलाते हैं। वे तीन हैं- विनयपिटक, सुत्तपिटक, अभिधम्मपिटक। उनमें भिक्षुओं के आचार के नियम, मुख्य सिद्धांत एवं तत्त्वों का विवेचन है।१४ ___ बौद्ध धर्म में मुख्य रूप से दो संप्रदाय हैं - १) हीनयान तथा २) महायान । हीनयान में ऐसा माना जाता है कि शुभ और अशुभ दोनों प्रकार की वासनाएँ हैं। निर्वाण ही सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है। हीनयानी साधक स्वकल्याण पर जोर देते हैं।
महायान साधक (संप्रदाय) में अशुभ वासनाओं को छोडकर शुभ वासनाओं के विकास पर जोर दिया है। वे करुणा को बहुत महत्त्व देते हैं। जैनधर्म
जैनधर्म का विश्व के धर्मों में महत्त्वपूर्ण स्थान है। वह आत्मकल्याण और प्राणिमात्र के श्रेयस के सिद्धांतों पर आधारित है। जैन धर्म अनादि अनंत है। जिनों (जिनेश्वर देवों) द्वारा उपदिष्ट होने के कारण यह जैन कहलाता है। 'जयति राग-द्वेषौ इति जिनं' जो राग एवं द्वेष को जीत लेते हैं, वे जिन कहलाते हैं। वे सर्वज्ञ होते हैं, क्योंकि उनके ज्ञान के आवरण नष्ट हो जाते हैं। वैसे वीतराग महापुरुष विभिन्न कालों में धर्म का प्रतिबोध देते हैं, उन्हें तीर्थंकर भी