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आस्रव और संवर में अंतर
जिन पाप क्रियाओं से आत्मा बाँधी जाती है, उन क्रियाओं को आस्रव या कर्मबंध का द्वार कहते हैं। संयम-मार्ग पर प्रवृत्त होकर इन्द्रिय, कषाय और संज्ञा का निग्रह करने पर ही आत्मा में पाप का प्रवेश द्वार बंद होता है, इसे ही संवर कहते हैं।
जिसे किसी भी वस्तु के प्रति राग, द्वेष या मोह नहीं है और जो सुख-दुःख को समान मानता है, ऐसे भिक्षु (साधु) को शुभ या अशुभ कर्म का बंध नहीं होता। जिस विरक्त मनुष्य की मानसिक, वाचिक और कायिक प्रवृत्तियों से पापभाव या पुण्यभाव उत्पन्न नहीं होता, उनकी हमेशा संवर क्रिया होती है, वह शुभ और अशुभ कर्मों से बद्ध नहीं होता।११४ आस्रव को एक दृष्टि से विकारी' परिणाम के भाव आना कहा जाता है। जिस प्रकार हवा के कारण वृक्षों में परिस्पंदन (कंपन) की गति बढती है, उसी प्रकार आत्मप्रदेशों में इन कषाय आदि विकारी भावों के कारण हलचल उत्पन्न होती है। इन हलचल की क्रियाओं को ही आस्रव कहते हैं। संवर में जिस प्रकार कर्मरूपी हवा की गति रुक जाती है, उसी प्रकार आत्मप्रदेश में राग, द्वेष और मोह आदि भाव भी रुक जाते हैं। जैसे कर्म के कारण को पहचाना जाता है, वैसे ही उसे आत्मप्रदेशों में आया जानकर कषाय आदि को रोकने का प्रयत्न किया जाता है, यही संवर है। कर्म आये और फिर वह अपने आप रुक जाये, ऐसा कभी नहीं हो सकता। हवा का प्रवाह आता है, और चला जाता है, परंतु हवा का वेग जब तक रहता है, तब तक परिस्पंदन करता रहता है। उसकी समाप्ति होने पर यह परिस्पंदन आदि रूप क्रिया अपने आप ही रुक जाती है। आत्मा का स्वाभाव एक जैसा ही रहता है, परंतु आत्मा विकारी भाव से अपनी क्रिया करता है। जो विकारी भावों की क्रियाओं को समझता है, वही आत्मस्वरूप में स्थित होता है। आत्म स्वरूप में स्थित होने पर ही संवर कहते हैं। . आस्रव कर्म का कर्ता, कर्म का उपाय, कर्म का हेतु, उसका निमित्त और कर्म के
आगमन का द्वार है। दशवैकालिकसूत्र के चौथे अध्ययन में कहा गया है, कि आस्रवद्वार को बंद करने से पापकर्म नहीं आते । ११५ प्रश्नव्याकरणसूत्र में पाँच आस्रवद्वार और पांच संवरद्वारों का वर्णन है।११६ भगवान महावीर ने आस्रव को फूटी हुई नौका की उपमा दी है। इसका विवेचन भगवतीसूत्र११७ में भी मिलता है।
कर्म का निरोध करने वाली आत्मा की अवस्था का नाम संवर है। संवर आस्रव का विरोधी तत्त्व है। आस्रव कर्म ग्राहक अवस्था है और संवर कर्मनिरोधक है। प्रत्येक आस्रव का एक-एक प्रतिपक्षी संवर है, जैसे
मिथ्यात्व आस्रव का प्रतिपक्षी- सम्यक्त्व संवर है। अविरति आस्रव का प्रतिपक्षी- व्रत संवर है। प्रमाद आस्रव का प्रतिपक्षी- अप्रमाद संवर है।