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________________ 20 भारत में जन्म लेने वालों का आचरण और व्यवहार इतना निर्मल और पवित्र है कि उनके पावन चरित्र की छाप प्रत्येक व्यक्ति पर पड़ी। इसलिए आचार्य मनु ने कहा है एतदेश प्रसूतस्य, सकाशादग्रजन्मनः। स्वं-स्वं चरित्रं शिक्षरेन् पृथिव्यां सर्व मानवा ॥४ - यहाँ वैदिक, जैन और बौद्ध परंपराओं के रूप में संस्कृति की त्रिवेणी संप्रवाहित हुई, वह अत्यंत गौरवपूर्ण है। इन तीनों सांस्कृतिक धाराओं को वैदिक संस्कृति और श्रमण संस्कृति के रूप में दो भागों में विभक्त किया जा सकता है। इनका संक्षिप्त परिचय निम्न रूप में हैं। वैदिक संस्कृति वैदिक संस्कृति, बाह्मण संस्कृति के नाम से प्रसिद्ध है। यहाँ ब्राह्मण शब्द बहुतही महत्त्वपूर्ण है। ब्राह्मण संस्कृति में संन्यासी एकाकी साधना के पक्षधर रहे, उन्होंने वैयक्तिक साधना को अधिक महत्त्व दिया है। वे एकान्त, शांत वनों में, आश्रम में रहते थे। उन आश्रमों में अनेक ऋषिगण भी रहते थे। पर सभी वैयक्तिक साधना ही करते थे और जो ब्रह्म या परमात्मा को जानता है। या ब्रह्म की उपासना करता है, उसे ब्राह्मण कहा जाता है।५ ब्राह्मण संस्कृति के आधार वेद हैं। वेद शब्द संस्कृत की विद् धातु से बना है, जो ज्ञात के अर्थ में है। वेदों में उन सिद्धांतों का वर्णन है. जो मानव को ज्ञान द्वारा सन्मार्ग दिखाता है। ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद एवं अथर्ववेद के रूप में वेद चार हैं। वेदों को श्रुति भी कहा जाता है, क्योंकि इनको गुरु से सुनकर शिष्य अपनी स्मृति में रखते थे। वैदिक संस्कृति या धर्म के अर्न्तगत ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र इन चार वर्णों में समाज को विभक्त किया गया है। ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास रूप में जीवन को चार भागों में बाँटा गया है, जो आश्रम कहे जाते हैं। विषय की दृष्टि से वेदों के कर्मकांड और ज्ञानकांड दो भाग हैं। कर्मकाण्ड में यज्ञ, याग आदि का वर्णन है। वैदिककाल में यज्ञों का बहुत ही प्रचलन था। 'स्वर्गकामो यज्ञेत्' अर्थात् जो स्वर्ग की कामना करता हो, उसे यज्ञ करना चाहिए। इस सिद्धांत के अनुसार अश्वमेघ, राजसूय आदि अनेक प्रकार के यज्ञ किये जाते थे। यज्ञों में पशुओं की बली दी जाती थी। ऐसा माना जाता था कि यज्ञ में हिंत्रित पशु स्वर्ग प्राप्त करता है इसलिए 'वैदिक हिंसा हिंसा न भवति' - अर्थात् वैदिक विधि के अनुसार यज्ञ आदि में की गई हिंसा, हिंसा नहीं मानी जाती थी। उसमें हिंसा का दोष नहीं लगता, किसी प्रकार का पाप नहीं होता; परंतु जैन धर्म को यह बात मान्य नहीं है, क्योंकि जैन धर्म अहिंसावादी धर्म है।
SR No.002299
Book TitleJain Darm Me Karmsiddhant Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhaktisheelashreeji
PublisherSanskrit Prakrit Bhasha Bhasha Vibhag
Publication Year2009
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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