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________________ 269 शुभत्व और अशुभत्व के निर्णयका आधार शुभ और अशुभत्व का आधार क्या है ? इस विषय पर गहराई से सोचने पर तीन आधार प्रतिफलित होते हैं। १) कर्ता का आशय, २) कर्ता या अच्छा, बुरा बाह्यरूप तथा, ३) उसके सामाजिक जीवन पर पडने वाले बाह्य प्रभाव । भगवद्गीता १५८ एवं धम्मपद १५९ में कर्मों की शुभाशुभता का आधार कर्ता के आशय . को माना है। गीता का आशय है कि- शुद्ध कर्म तो सात्त्विक भाव से किये जाने वाले यज्ञ, तप, त्याग, दान आदि हैं, परंतु राजस और तामस भाव से किये जाने पर ये क्रमशः शुभअशुभ कर्म होने से शुभकर्मबंध और अशुभकर्मबंध हो सकते हैं । १६० गीता में कर्ता के अभिप्राय को ही मुख्यता दी है परंतु कहीं-कहीं तत्कालीन समाज में प्रचलित यज्ञ, दान और तप कर्म पर चारों वर्णों एवं चारों आश्रमों के नियत कर्म करने को कहा है । १६१ बौद्ध दर्शन में शुभाशुभत्व का आधार बौद्ध धर्मदर्शन में धम्मपद १६२ में कहा है- शुभाशुभत्व का आधार कर्ता के आश को मानते हुए कहा है कि 'कायिक या वाचिक कर्म कुशल (शुभ) है या अकुशल (अशुभ) ? इसका निर्णय करने की कसौटी मानस कर्म है । ' कहीं-कहीं शुभाशुभता का आधार परिणाम क्रिया के फल को माना है । 'परोपकाराय पुण्याय पापाय परपीडनम्' । १६३ परोपकार पुण्य है और दूसरों को पीडा देना पाप है। यह चिंतन भारतीय मनीषियों का है। जैन विचारकों ने पुण्यबंध (शुभबंध) को भी अन्न पुण्य आदि नौ पुण्य का कारणाश्रित बताया और पाप कर्म को प्राणातिपात आदि अष्टादश पापस्थान का कारण बताया है। वस्तुतः पुण्य-पाप (शुभाशुभ कर्म) के संबंध में आगमों में प्रमुख रूप से उल्लेख किया गया है। कर्म के शुभत्व और अशुभत्व के पीछे एक और दृष्टिकोण है- दूसरों को अपने तुल्य मानकर व्यवहार करना है । १६४ आत्मनः प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत् । अपने को प्रतिकूल आचरण या व्यवहार दूसरों के प्रति भी मत करो यही कर्म के शुभत्व का मूलाधार भारतीय ऋषियों ने बताया है । १६५ महाभारत १६६ में भी यही बात कही है। सूत्रकृतांगसूत्र१६७ में शुभाशुभत्व ( धर्म-अधर्म) के निर्णय में अपने समान दूसरे को मानने का- आत्मोपम्य का दृष्टिकोण स्वीकृत किया गया है। अनुयोगद्वारसूत्र में भी बताया गया है कि- 'जिस प्रकार मुझे दुःख प्रिय नहीं है, उसी प्रकार सभी जीवों को भी दुःख प्रिय
SR No.002299
Book TitleJain Darm Me Karmsiddhant Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhaktisheelashreeji
PublisherSanskrit Prakrit Bhasha Bhasha Vibhag
Publication Year2009
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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