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________________ 249 मुक्ति न हो तब तक कर्म छाया की तरह वेदपंथी कवि सिंहलन मिश्रजी ने कहा है- 'आप आकाश में उड जाएं, दिशाओं के परले पार चले जायें, अगाध महासागर के तल में जाकर बैठ जायें, कहीं भी जाकर छिप जायें, जहाँ चाहे वहाँ पहुँच जाएँ लेकिन आपने जन्म जन्मांतर में जो भी शुभाशुभ कर्म किये हैं, उनके फल तो आपकी छाया की तरह आपके साथ ही रहेंगे। वे आपको फल दिये बिना कदापि नहीं छोडेंगे।५७ कर्म का नियम अटल है विश्व के प्रत्येक राज्य में हर डिपार्टमेंट को व्यवस्थित रूप से चलाने और नियंत्रण में रखने के लिए कानून कायदे होते हैं। समाज को सुचारु रूप से संचालन और नियमन करने हेतु नियमोंपनियम होते हैं। इसी प्रकार धार्मिक क्षेत्र में भी धर्म संघ को सुव्यवस्थापूर्वक चलाने आचार-संहिता तथा समाचारी बनाते हैं। इस प्रकार विश्व के प्रत्येक प्राणी के अपनेअपने अच्छे-बुरे कर्मों का सार्वभौम तथा अटल नियम (कानून) है। सारा विश्व कर्म के अटल नियम के अनुसार चलता है, इसमें थोडी भी गडबडी नहीं होती।५८ कर्मों के नियम में कोई अपवाद नहीं कर्म के कानून की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इसमें किसी भी प्रकार की लाच, रिश्वत आदि नहीं चलती। विश्व के समस्त कानून कायदों में कोई न कोई अपवाद आदि [Excepition of the Rule Proviso] धार्मिक नियमों और आचार संहिताओं में भी उत्सर्ग और अपवाद होता है, मगर कर्म के कानून में प्राय: अपवाद नहीं होता।५९ जड़ कर्म पुद्गल में भी असीम शक्ति ___ साधारण व्यक्ति यह समझता है कि, कर्म तो पुद्गल है, जड़ है, उनमें क्या शक्ति होगी? परंतु यह उनका भ्रम है। जड़ पदार्थों में भी असीम शक्ति होती है। अणुबम, परमाणु बम बहुत छोटा होता है, क्रिकेट की गेंद के आकार सा छोटे से बम का चमत्कार तो हम सुन चुके हैं। हिरोशिमा और नागासाकी जैसे दो विशाल और सुंदर शहरों को बिल्कुल नष्ट भ्रष्ट कर दिया था। जड़ बम का धमाका लाखों मनुष्यों के लिए विनाशलीला का सृजन कर सकता है। अणुबंब आकार में बहुत ही छोटा होता है, किन्तु शक्ति की अपेक्षा वह सहस्रों विशाल बमों से अधिक कार्य करता है। अब तो उससे भी अधिक पाँच सौ गुनी शक्तिवाला हाइड्रोजन बम निकला है। भौतिक विज्ञान वेत्ताओं के प्रयत्न से राइ के दाने से भी छोटा बम बन रहा है। वह एक ही बम सारे विश्व का सर्वनाश कर सकता है। इसलिए पंचाध्यायी उत्तरार्द्ध में कहा गया है- 'कर्म की शक्ति आत्मा शक्ति में बाधक है।'६०
SR No.002299
Book TitleJain Darm Me Karmsiddhant Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhaktisheelashreeji
PublisherSanskrit Prakrit Bhasha Bhasha Vibhag
Publication Year2009
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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