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.. कर्मरूपी महाशक्ति को नमस्कार करते हुए भर्तृहरि ने कहा है कि- 'जिस कर्म ने (वैदिक पुराणों के अनुसार) ब्रह्मा को कुंभकार की तरह ब्रह्मांडरूपी भांड (बर्तन) बनाने में नियंत्रित (नियोजित) कर रखा, जिसने विष्णु को दस अवतार ग्रहण करने तथा सृष्टि का पालन करने का गहन कार्य देकर घोर संकट में डाल दिया। जिस कर्म ने रुद्र (महादेव) को खप्पर हाथ में लेकर भिक्षाटन करने का कार्य सौंप दिया। जिस कर्म के प्रभाव से तेजस्वी अंशुमाली सूर्य को नित्य ही गगन मंडल में भ्रमण करना पडता है, उस कर्म को नमस्कार है।५४
निष्कर्ष यह है कि, राजा हो या रंक, धनिक हो या निर्धन, सम्राट हो चाहे सेवक, दास हो चाहे स्वामी, श्रमिक हो या अश्रमिक, निरक्षर हो चाहे साक्षर, बुद्धिमान हो चाहे मूर्ख, युवक हो या बालक, युवती हो चाहे वृद्ध सभी कर्म शक्ति के आगे नतमस्तक है। कर्म : शक्तिशाली अनुशास्ता ____ कर्म एक ऐसा प्रचंड शक्तिशाली अनुशास्ता है, जो अपने कानून कायदों को भंग करने या मर्यादाओं को तोड़ने वालों को दंड देता है और शुभ कर्म एवं परोपकारमूलक सुकृत्य करने वालों को पुरस्कार भी देता है। उसे प्रत्येक प्राणी के द्वारा किये जाने वाले क्रियमाण, संचित और प्रारब्ध कर्मों का लेखा जोखा रखने की जरूरत नहीं पड़ती। उसने प्रत्येक प्राणी के कृत, भुक्त और क्षीण कर्मों के संस्कारों का संचय करने के लिए प्रत्येक प्राणी को अपनी ओर से 'कार्मण शरीर' नामक ऐसा साधन प्रदान कर रखा है, जो उसके द्वारा किये गये, भोगे गये या क्षय किये गये समस्त अच्छे-बुरे कृत कर्मों के संस्कारों को टेलीपथी की तरह उस पर अनायास ही अंकित करता रहता है। वे ही कर्मसंस्कार यथासमय उदित होकर उसे दंड या पुरस्कार देते रहते हैं। बाहर दिखाई देने वाला यह स्थूल शरीर (औदारिक या वैक्रिय शरीर) रहे या न रहे, परंतु यह कार्मण शरीर (सूक्ष्मतम शरीर) मरते या जीते रहते हर समय, प्रतिक्षण संसारी जीव के साथ रहता है और उसकी समस्त कार्यवाही का सूक्ष्म निरीक्षण-परीक्षण करता रहता है। शास्ता और अनुशास्ता के रूप में समय-समय पर प्रत्येक प्राणी को उसके कर्म का फल देता रहता है।५५ हिंदुधर्म के पुरस्कर्ता गोस्वामी तुलसीदास जी भी कहते हैंकर्मप्रधान विश्व करि राखा।
जो जस करही सो तस फल चाखा॥५६
कर्म का शासन कहे या अनुशासन विश्व में सर्वत्र सभी बद्ध जीवों पर चलता है।