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समयसार में कहा गया है- कर्म की बलवत्ता से जीव के रागादि परिणाम अज्ञानपूर्वक होते हैं।६१ कार्तिकेयानुप्रेक्षा में कहा गया है- (कर्मरूप) पुद्गल द्रव्य की कोई ऐसी अपूर्व शक्ति दिखाई देती है, जिसके कारण जीव का केवलज्ञान स्वभाव भी विनष्ट हो जाता है।६२ भगवती आराधना में कर्म की बलवत्ता बताते हुए कहा गया है- 'जगत के सभी बलों में कर्म सबसे बलवान है। कर्म से बढकर संसार में कोई बलवान नहीं है। जैसे हाथी नलिनीवन को नष्ट कर देता है, वैसे ही कर्मबल६३ समस्त बलों को मर्दन कर देता है। परमात्मप्रकाश में भी स्पष्ट कहा गया है- कर्म ही इस पंगू आत्मा को तीनों लोक में परिभ्रमण कराता है। कर्म बलवान हैं। उसे विनष्ट करना बडा कठिन है। वे चिकने, भारी और वज्र के समान दुर्भेद होते हैं।६४ ___ कर्मशक्ति के सम्मुख मनुष्य की बौद्धिक और शारीरिक शक्ति अथवा जितनी भी अन्य भौतिक शक्तियाँ वे सबकी सब धरी रह जाती है। अन्य सब भौतिक शक्तियों को कर्म शक्ति के आगे नतमस्तक होना पडता है। जैनागम, महाभारत आदि धर्मग्रंथों सभी इस तथ्य के साक्षी हैं कि, कर्मरूपी महाशक्ति के आगे मनुष्य की सारी शक्तियाँ नगण्य हैं, तुच्छ हैं। कर्म शक्ति से प्रभावित जीवन
कर्मशक्ति की प्रतिकूलता या वक्रदृष्टि के कारण ही चरम तीर्थंकर भगवान् महावीर को साढे बारह वर्ष अनेकानेक असह्य एवं भीषण उपसर्गों और कष्टों का सामना करना पड़ा। मनुष्यों, तिर्यंचों और देवों ने उनके जीवन में यातनाओं का एक जाल बिछा दिया था। यद्यपि वे चतुर्विध श्रमण संघ के अधिनायक एवं सर्वेसर्वा थे, किन्तु छद्मस्थ अवस्था के दौरान संगम देव द्वारा घोर कष्ट दिया गया। एक ग्वाले ने उनके कानों में कीले ठोके । जब वे अनार्य देश में पधारे, तब तो अनार्यों ने उन्हें कष्ट देने में कोई कसर नहीं रखी। उन पर शिकारी कुत्ते छोडे गये; जिन्होंने उनके शरीर में से माँस नोच-नोच कर खाया। यह सब पूर्वकृत निकाचित कर्मों की अवश्यमेव फलदायिनी शक्ति का प्रभाव था। भगवान महावीर का जीवन एक तरह से प्रचंड कर्मशक्ति से प्रभावित जीवन था।६५ कल्पसूत्र६६ भ. महावीर एक
अनुशीलन,६७ भगवतीसूत्र,६८ महावीरचरियम्६९ में भी यही बात कही है। . कर्म की दशा और गति अत्यंत गहन है। श्रीकृष्णजी के बाल्यकाल के मित्र सुदामा कर्म की गहनता को अभिव्यक्त करते हुए कहते हैं- 'हम दोनों एक ही गुरु के शिष्य, सहपाठी थे किन्तु हम दोनों एक ही गुरु के शिष्य, सहपाठी थे किन्तु हम दोनों में तुम पृथ्वीपति हो और मैं दाने-दाने के लिए मोहताज बन गया। इसलिए कर्म की गति अत्यंत गहन दिखाई देती है।७०