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इसके विपरीत जाति, कुल, बल, रूप, तप, लाभ, श्रुत और ऐश्चर्य का मद अर्थात् अभिमान करने से जीव नीच गोत्र कर्म बाँध लेता है।१७९ गोत्र कर्म १६ प्रकार से भोगे उच्चगोत्र कर्म बंध का फलभोग आठ प्रकार से होते हैं। १) जाति का अभिमान न करने से लोकप्रिय उच्च जाति की प्राप्ति होती है। २) कुल का मद न करने से सम्मानित और प्रतिष्ठित कुल की प्राप्ति होती है। ३) बल का मद न करने से शरीर बलिष्ठ और स्वस्थ मिलता है। ४) रूप का अभिमान न करने से उत्तम रूप सौंदर्य की प्राप्ति होती है। ५) तप का मद न करने से व्यक्ति को बाह्य आभ्यंतर तप करने का सुंदर अवसर प्राप्त
होता है। ६) ज्ञान का मद न करने से श्रुतज्ञान की संपदा प्रचुरमात्रा में प्राप्त होती है। ७) लाभ मद न करने से व्यक्ति को सदैव सर्वत्र उत्कृष्ट लाभ का सर्वोत्तम अवसर . मिलता है। ८) ऐश्वर्य का अभिमान न करने से ऐश्वर्य सामग्री अनायास प्राप्त हो जाती है।
उपर्युक्त उच्चगोत्र के फलस्वरूप सभी वस्तुएँ सहजरूप से प्राप्त होती हैं। उसी प्रकार नीच गोत्र कर्म के फलस्वरूप पुरुषार्थ करने पर भी उन वस्तुओं का योग प्राप्त नहीं होता।१८० गोत्र कर्म का प्रभाव
मनुष्य आठ प्रकार के अहंकार के जितना निकट जाता है, उतना ही वह आत्म भावों से दूर चला जाता है और अहंकार से जितना दूर रहता है उतनाही वह सत्यादि आत्म गुणों के निकट जाने का प्रयास करता है। अत: अभिमान से दूर रहने की प्रेरणा लेना ही गोत्र कर्म को विस्तृत रूप से जानने का सार है। गोत्र कर्म की स्थिति
गोत्र कर्म की स्थिति- जघन्य आठ मुहूर्त की, उत्कृष्ट- बीस कोडाकोडी सागरोपम की, अबाधाकाल - दो हजार वर्ष का१८१ अंतराय कर्म का निरूपण
__ आत्मा में अनंत शक्ति है। उस आत्मशक्ति को प्रकट करने के लिए जो शक्ति चाहिए उसमें बाधा डालने वाला अंतराय कर्म है। अंतराय शब्द का अर्थ है दानादि में विघ्न, बाधा, रुकावट या अडचन आदि देना।१८२