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________________ 214 निश्चय नय की अपेक्षा से आत्मा में अनंत शक्ति होते हुए भी अपंगता, व्याधि, आलस्य, पराधीनता, आसक्ति, अरुचि या मानसिक विक्षिप्तता आदि के कारण आत्मा शक्ति इस कर्म के द्वारा अवरुद्ध हो जाती है और उसकी वीरता कुण्ठित हो जाती है। यही कारण है अंतराय कर्म आत्मा की सभी शक्तियों पर और दानादि क्षमताओं पर अंकुश "लगाने वाला कर्म है । १८३ अंतराय कर्म का कार्य है- आत्मा को लाभ आदि की प्राप्ति में, शुभ कार्यों को करने की क्षमता में और तप, शील आदि की साधना करने के सामर्थ्य में अवरोध खडा कर देना । १८४ आत्मा जब कर्म योग्य परमाणुओं को आकर्षित करके आत्म प्रदेशों से आबद्ध करती है, तब उनमें ऐसा सामर्थ्य उत्पन्न होता है जो आत्मा की शक्ति को प्रकट होने में रुकावट डालता है। फलतः दान, लाभ, भोग या उपभोग आदि कार्यों में सफलता या कार्य सिद्धि नहीं हो पाती। इस विघ्न-बाधा को उपस्थित करने वाला अंतराय कर्म है ! इस कर्म का स्वभाव दुष्ट भंडारी के समान है । १८५ जिसे राजा के द्वारा आदेश देने पर भी भंडारी धन प्रदान करने से मना करता है, उसी प्रकार आत्मा रूपी राजा के लिए वीतराग . परमात्मा द्वारा अनंत शक्तियाँ प्राप्त करने का संदेश होने पर भी अंतराय कर्म रूपी भंडारी दान, लाभ, भोग, उपभोग की इच्छा प्राप्ति में तथा तप, संयम, त्याग, प्रत्याख्यान आदि करने की क्षमता को कुंठित कर देता है एवं रुकावट डालता है। अंतराय कर्म की ५ प्रकृतियाँ १) दानान्तराय, २) लाभान्तराय, ४) उपभोगान्तराय, ५) वीर्यान्तराय । १८६ ३) भोगान्तराय, १) दानान्तराय दान देने की आकांक्षा है तथा दान की सामग्री, पात्र, विधि और फल का ज्ञान भी है परंतु दान देने का उत्साह नहीं है अथवा किसी अपरिहार्य या आकस्मिक कारणवश दान देने में विघ्न उपस्थित हो जाते हैं, वह दानान्तराय कर्म है। १) अनुकंपादान, ५) लज्जादान, ९) करिष्यतिदान, दान का अर्थ है अपने या दूसरे के कल्याण के लिए अपने अधिकार की वस्तु का त्याग कर देना। स्थानांगसूत्र में दान के १० प्रकार बताये हैं । १८७ २) संग्रहदान, ३) भयदान, ४) कारुण्यदान, ६) गौरवदान, ७) अधर्मदान, ८) धर्मदान, १०) कृतदान । इसके अतिरिक्त ज्ञानदान, अभयदान और औषधदान भी हैं।
SR No.002299
Book TitleJain Darm Me Karmsiddhant Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhaktisheelashreeji
PublisherSanskrit Prakrit Bhasha Bhasha Vibhag
Publication Year2009
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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