________________
208
पिण्ड प्रकृति और जिनके अवांतर भेद नहीं होते हैं उन्हें प्रत्येकप्रकृति कहते हैं। सबसे पहले ४२ भेदों का कथन करते हैं। पिण्ड प्रकृतियाँ १४ हैं
१) गति, २) जाति, ३) शरीर, ४) अंगोपांग, - ५) बंधन, ६) संघातन, ७) संहनन, ८) संस्थान,
९) वर्ण, १०) गंध, ११) रस, १२) स्पर्श,
१३) आनुपूर्वी, १४) विहायोगति।१६५ प्रत्येक प्रकृतियाँ आठ हैं
१) पराघात, २) उच्छ्रवास, ३) आताप, ४) उद्योत,
५) अगुरुलघु, ६) तीर्थंकर, ७) निर्माण, ८) उपाघात।१६६ त्रस दशक
१) त्रसनाम, २) बादरनाम, ३) पर्याप्तनाम, ४) प्रत्येकनाम, ५) स्थिरनाम, ६) शुभनाम, ७) सुभगनाम, ८) सुस्वरनाम,
९) आदेयनाम, १०) यश:कीर्तिनाम। स्थावर दशक
१) स्थावरनाम, २) सूक्ष्मनाम, ३) अपर्याप्तनाम, ४) साधारणनाम, ५) अस्थिरनाम, ६) अशुभनाम, ७) दुर्भगनाम, ८) दुःस्वरनाम, ९) अनादेयनाम, १०) अयश:कीर्तिनाम।
इस प्रकार १४ पिण्ड प्रकृतियाँ, ८ प्रत्येक प्रकृतियाँ, त्रस दशक और स्थावर दशक कुल ४२ प्रकृतियों का वर्णन किया है। त्रस दशक की प्रकृतियों की गणना पुण्य प्रकृतियों में और स्थावर दशक की प्रकृतियों की गणना पाप प्रकृतियों में की जाती है।
अपेक्षा भेद से बनने वाले ९३ भेदों को कहने के लिए १४ पिण्ड प्रकृतियों की उत्तरप्रकृतियों की संख्या एवं परिभाषायें इस प्रकार हैं। १) गतिनामकर्म के ४ भेद
१) नरकगति, २) तिर्यंचगति, ३) मनुष्यगति, ४) देवगति१६७ २) जातिनामकर्म के ५ भेद
१) एकेन्द्रिय, २) द्वीन्द्रिय, ३) त्रीन्द्रिय, ४) चौरेन्द्रिय, ५) पंचेन्द्रिय।