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आयुष्य कर्म का प्रभाव ___ आयुष्य कर्म के प्रभाव से जीवात्मा को विविध अवस्थाएँ प्राप्त होती हैं। लोग असह्य वेदना से छुटकारा पाने के लिए शीघ्र मृत्यु चाहते हैं, परंतु आयुष्य कर्म पूर्ण न हो तब तक मौत नहीं आ सकती है। देवगति के देवों को अपना अपार सुख वैभव छोडने की इच्छा नहीं होती और मनुष्यगति के मनुष्य भी अपनी समृद्धि छोडना नहीं चाहते, फिर भी उन्हें आयुष्य कर्म पूर्ण होने पर विवशता से बरबस सब छोडना पडता है। उसी प्रकार नारकी पल-पल मौत की इच्छा करते हैं, परंतु जब तक आयुष्य कर्म पूरा न हो तब तक मर नहीं सकता। आयुष्य कर्म की स्थिति
नरक व देव की स्थिति जघन्य दश हजार वर्ष और अन्तर्मुहर्त की उत्कृष्ट तेतीस सागर और करोड पूर्व का तीसरा भाग अधिक। मनुष्य, तिर्यंच की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट तीन पल्य कोडपूर्व का तीसरा भाग अधिक।१५५ नामकर्म का निरूपण
नाम कर्म को चित्रकार की उपमा दी गई है।१५६ जैसे चित्रकार अनेक प्रकार के अच्छेबुरे चित्र बनता है, उनमें विभिन्न रंग भरता है, उनकी विविध आकृतियाँ बनाता है, वैसे नाम कर्म आत्मा के अच्छे-बुरे विभिन्न प्रकार के रूप बनाता है। इसी कर्म के कारण किसी जीव में सुंदरता और किसी में असुंदरता के दर्शन होते हैं।
चाण्डाल पुत्र हरिकेशी१५७ के बीभत्स शरीर का तथा ऋषिवर अष्टावक्र की शरीरगत वक्रता का कारण नामकर्म ही था। स्थानांगसूत्र की टीका में कहा गया है, 'नामकर्म आत्मा के अरूपित्व शुद्ध स्वभाव को आच्छादित करके उसे नरक, तिर्यंच, मनुष्य या देवरूप प्रदान करता है। यह नाम कर्म का चमत्कार है कि, वह किसी की आकृति निग्रो जैसी बना देता है, तो किसी की चाइनीज जैसी बना देता है। आत्मा के अरूपित्व गुण को ढंक कर रूपी शरीर
और उससे संबंधित अंगोपांगादि प्रदान करना नाम कर्म का कार्य है। १५८ नाम कर्म का विस्तार
नाम कर्म के दो भेद - १) शुभ नाम, २) अशुभ नाम।१५९
शुभ प्रकृतियाँ पुण्यरूप हैं और अशुभ प्रकृतियाँ पापरूप हैं।१६० अपेक्षा भेद से नाम कर्म के ४२, ९३ और १०३ और ६८ भेद हैं। प्रज्ञापना,१६१ तत्त्वार्थसूत्र१६२ और समवायांग१६३ गोम्मटसार१६४ में भी यही कहा है।
नाम कर्म के अपेक्षा भेद के कारण ४२ और ९३ भेदों में कुछ प्रकृतियाँ अवान्तर भेदवाली हैं और कुछ अवांतर भेदवाली नहीं हैं। जिस प्रकृति के अवान्तर भेद होते हैं उन्हें