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हम ‘प्रभु की लीला' या होनहार एवं नियति मानकर चुप हो जाते हैं। तब कर्मसिद्धांत उनकी तह में जाकर बड़े तर्कपूर्ण व्यावहारिक ढंग से सुलझाते हैं।
___ इसके सात प्रकरण जीव को अष्ट कर्मों को नष्ट करने का संदेश दे रहा है। आठ कर्मों का नाश करने का चिंतन, मनन हरेक जिज्ञासुओं के लिए कल्याणकारी शुभकारी होवे ।
यह ग्रन्थ आध्यात्म के रसिकों के लिए आनंद रस से परिपूर्ण करनेवाला, आंतरिक तृप्ति देनेवाला और मोक्ष मंजिल तक पहुँचानेवाला होवे यही मंगल मनीषा है।
प्रबंध लेखन का उद्देश्य मुमुक्षु साधकों को और जैन दर्शनानुसार उपासना करने वाले साधकों के एक बौद्धिक और आध्यात्मिक सीमा तक साधन उपलब्ध कर देना यह है। परीक्षक इससे सहमत होंगे ऐसा विश्वास है। . कर्मक्षय के पुरुषार्थ द्वारा आत्मा जीव से शिव, नर से नारायण, भक्त से भगवान और आत्मा से परमात्मा बनाता है।
कृतज्ञता-अभिव्यक्ति प्रस्तुत शोध ग्रंथ के लेखन कार्य में प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप में पूजनीय, वंदनीय, स्मरणीय, गुरुवर्यों का आशीर्वाद, कृपादृष्टि और सत् प्रेरणा है। उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करना यह मेरा प्रथम कर्तव्य है।
आध्यात्म जगत की दिव्य ज्योति अमृतवाणी द्वारा जनता के लिए धर्मसुधा की वृष्टि करने वाले, पवित्र हृदया, उज्जवल संघ प्रभाविका विश्वशांति रत्ना प.पू. गुरुणीमैया डॉ. धर्मशीलाजी म.सा. (एम.ए., पीएच.डी. साहित्यरत्न) की दिव्य प्रेरणा से मेरा शैक्षणिक, साहित्यिक शोधकार्य में मुझे विद्या, संयम और साधनामय जीवन में नित्य प्रेरणा और मार्गदर्शन मिला। उनका मैं तहे दिल से आभार व्यक्त करती हूँ। - मेरे इस शोधकार्य में शुभ कामना रखनेवाले मुझे हमेशा सहयोग देने वाले नवकार साधिका पू. डॉ. चारित्रशीलाजी म.सा., पू. डॉ. पुण्यशीलाजी. म.सा., पू. लब्धिशीलाजी म.सा., पू. कीर्तिशीलाजी म.सा., पू. मैत्रीशीलाजी म.सा. आदि साध्वी बहनों के प्रति मैं आभार व्यक्त करती हूँ।
करुणा, अनुकंपा और मानवता से जिनका जीवन भरा हुआ है। अपनी संतानों में संस्कार देने का काम उन्होंने बचपन से ही किया था। ‘सादा जीवन उच्च विचार' ऐसा जिनका जीवन है ऐसे श्री सेवाभावी दृढधर्मी समाजसेवी सुश्रावकजी करुणामूर्ति मेरे संसारी मातुश्री पिताश्री सौ. जयश्रीबेन हसमुखभाई सुतरीया, जिन्होंने मुझे संयम मार्ग की ओर प्रेरित कर संयम दिलाया और उच्च शिक्षण में सहयोग दिया। वैसे ही मेरे संसारी भाई-भाभी