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________________ 196 जाता है, पर किसी भी तरह झुकता नहीं। इस प्रकार के अभिमानी ऐसे कठोर होते हैं, जो जीवन में कभी भी नम्र नहीं बनते। ३) अनंतानुबंधी माया बांस के मूल की गाँठ के समान है,११६ जैसे बांस के मूल की गाँठ किसी भी उपाय से सीधी या सरल नहीं हो पाती। इसी प्रकार अनंतानुबंधी माया जिंदगी भर बनी रहती है। किसी भी उपाय से उसमें सरलता नहीं आ पाती। ४) अनंतानुबंधी लोभ लोभ को किरमिची के रंग की उपमा दी है। जैसे-जैसे वस्त्र पर किरमिची रंग लग जाने पर उस वस्त्र को हजार बार साबुन से धोने पर भी वह रंग नहीं छूटता। निष्कर्ष यह है कि, अनंतानुबंधी कषाय जन्म जन्मांतरों तक भी साथ-साथ चलती है। इसके प्रभाव से जीव नरक में ही उत्पन्न होता है। अप्रत्याख्यानावरण कषाय . जिस कषाय के उदय से आत्मा यत्किंचित् भी त्याग-प्रत्याख्यान नहीं कर सकती उसे 'अप्रत्याख्यानावरण कषाय' कहते हैं। यह कषाय आत्मा को पापों से विरत नहीं होने देती। इस कषाय की अवधि अधिक से अधिक एक वर्ष की है।११७ अप्रत्याख्यानावण कषाय में तीव्रता कम होने से मिथ्यात्व दूर होता है और सम्यक्त्व प्रकट होता है। १) अप्रत्याख्यानावरण क्रोध सूखे तालाब में पड़ी हुई मिट्टी की दरार के समान है, जो शीघ्र नहीं मिटती किंतु उसमें धूल, पत्थर, कचरा आदि गिरता है तो दीर्घ काल में वह दरार भरती है। ऐसे ही यह क्रोध, कठिन उपाय से शांत होता है। २) अप्रत्याख्यानावरण मान - मान हड्डी के समान है। जिस प्रकार मुडी हुई हड्ही को सीधी करनी हो तो लगभग एक वर्ष तक तेल आदि का मर्दन करने से वह सीधी हो जाती है, उसी प्रकार अप्रत्याख्यानी मान वाला अधिक से अधिक एक वर्ष तक अकडा रहता है, आखिर नम जाता है। ३) अप्रत्याख्यानावरण माया माया को मेंढे के सिंग से उपमित किया गया है, जैसे मेंढे के सिंग में रही हुई वक्रता कठिन परिश्रम और अनेक उपायों से दूर होती है।
SR No.002299
Book TitleJain Darm Me Karmsiddhant Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhaktisheelashreeji
PublisherSanskrit Prakrit Bhasha Bhasha Vibhag
Publication Year2009
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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