________________
197
४) अप्रत्याख्यानावरण लोभ
यह लोभ कीचड़ के रंग के समान है। जैसे वस्त्र पर लगा हुआ कीचड़ का दाग कठिनाई से मिटता है। उसी प्रकार लोभ अत्याधिक प्रयत्न करने से दूर होता हो वह अप्रत्याख्यानावरण लोभ कहलाता है।
इस कषाय के उदय से तिर्यंच गति का बंध होता है। अप्रत्याख्यानावरणीय चतुष्क के प्रभाव से श्रावक धर्म अर्थात् देशविरती की प्राप्ति नहीं होती, तथा श्रमण धर्म की भी प्राप्ति नहीं होती।११८
प्रत्याख्यानावरण कषाय
प्रत्याख्यानावरणीय कषाय के उदय से सर्व विरती रूप प्रत्याख्यान अर्थात् श्रमण धर्म (महाव्रत) की प्राप्ति नहीं होती, उसे प्रत्याख्यानावरण कषाय कहते हैं। इसकी स्थिति चार मास की है।११९ इसके उदय से आत्मा मनुष्य गति का बंध करती है। साधु धर्म का पालन नहीं होता।१२० १) प्रत्याख्यानावरण क्रोध
प्रत्याख्यानावरणीय क्रोध को धूल पर खींची हुई लकीर के समान बताया गया है। जैसे धूल पर खींची हुई लकीर हवा आदि के द्वारा मिट जाती है, वैसे ही प्रत्याख्यानावरण क्रोध भी उपायों से शांत हो जाती है। २) प्रत्याख्यानावरण मान
यह मान लकड़ी के खंभे के समान है, जैसे लकड़ी का स्तंभ तेल आदि में रखने से जल्दी नम जाता है, उसी प्रकार जो मान साधारण उपायों से मिट जाता है, वह प्रत्याख्यानावरण मान कहलाता है। ३) प्रत्याख्यानावरण माया
चलते हुए बैल के मूत्र की धारा के समान है, जैसे चलते हुए बैल के मूत्र से पडने वाली टेढी मेढी रेखा हवा आदि से सूख जाने पर मिट जाती है, वैसे ही प्रत्याख्यानावरण माया अल्प प्रयास से परिवर्तन हो जाती है। ५) प्रत्याख्यानावरण लोभ
लोभ गाडी के पहिये के खंजन जैसा अथवा काजल के रंग जैसा है जो थोडे से प्रयास से छूट जाता है।