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किसी भी हालत में सहन नहीं कर पाते। ऐसी विकृत मनोदशा प्राय: मानव जीवन के सभी क्षेत्रों में दृष्टि गोचर होती है। ज्ञान के क्षेत्र में भी देखा जाता है, एक व्यक्ति स्वयं पर लिख नहीं सकता लेकिन दूसरे पढते हो तो उसको अच्छा नहीं लगता, इस प्रकार ज्ञान साधना में बाधक बनने से या रोडे अटकाने से, ज्ञान प्राप्ति के साधनों को समाप्त करने से ज्ञानावरणीय कर्म का बंध होता है। ४) नाणपउसेणं ___ज्ञान तथा ज्ञानी पर द्वेष करे तो ज्ञानावरणीय कर्म बाँधे ।३४ कुछ लोग स्वयं ज्ञान प्राप्त नहीं करते। दूसरे लोग ज्ञान प्राप्त करते हैं तो उन पर द्वेष करते हैं और जो ज्ञान प्राप्त करते हैं उनके प्रति भी द्वेष-भाव रखते हैं, उनकी ईर्षा करते हैं, ऐसा करने से भी ज्ञानावरणीय कर्म का बंध होता है। ५) नाणआसयणाए ___ ज्ञान तथा ज्ञानी की असातना (तिरस्कार निरादर) करे तो ज्ञानावरणीय कर्म बाँधते हैं।३५ जो ज्ञान पढ़ाते हों, उन ज्ञानी गुरुजनों का आदर न करे, सन्मान आदि न करे या जो गुरु पढ़ाते हों उनको कहे कि आप अच्छा नहीं पढ़ाते हैं, इस प्रकार ज्ञानी की असातना करने से ज्ञानावरणीय कर्म का बंध होता है। ६) विसंवायणा जोगेण
ज्ञानी के साथ झूठा वाद-विवाद करे, तो ज्ञानावरणीय कर्म बंधते हैं अथवा ज्ञान का दुरुपयोग करने से ज्ञानावरणीय कर्म बंधते हैं।३६ इस संसार में कई लोग ज्ञान इसलिए सीखते हैं कि दूसरों को हराना, नीचे गिराना या दूसरों के साथ वाद-विवाद करके स्वयं की प्रतिष्ठा स्थापित करना। इस प्रकार करने से ज्ञानावरणीय कर्म बंधते हैं। ज्ञान की शक्ति का दुरुपयोग करने से ज्ञानावरणीय कर्म बंधते हैं। विज्ञान बौद्धिक विकास का विलक्षण रूप है, विज्ञान हिंसा से संबंधित एटम बम, हाइड्रोजन बम आदि शस्त्रों का उत्पादन करता है, उससे संसार में विनाश फैलता है, और विज्ञान ही अहिंसा, करुणा और परोपकार से प्राणिमात्र के रोग, दुःख, संकट आदि विपदाएँ दूर करने हेतु साधनों का आविष्कार करके प्राणियों को सुख शान्ति पहुँचाये तो ज्ञान का सदुपयोग है। ज्ञानावरणीय कर्म का अनुभाव फल भोग
ज्ञानावरणीय कर्म के उदय से आत्मा ज्ञातव्य (जानने योग्य) विषय को नहीं जानती। उसका ज्ञान आवृत हो जाता है। जैन कर्म विज्ञान मर्मज्ञों ने बताया है- ज्ञानाावरणीय कर्म जब उदय में आते हैं, तब वे अपना फल आत्मा को दस प्रकार से अनुभव कराते हैं।