SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 183
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 169 १९५ १९५ १९८ २०० २०० २०१ २०१ २०२ २०२ २०५ कषाय-चारित्र-मोहनीय की १६ प्रकृतियाँ अनंनतानुबंधी कषाय नोकषाय-चारित्र-मोहनीय का स्वभाव मोहनीय कर्मबंध के ६ कारण मोहनीय कर्म पांच प्रकार से भोगे मोहनीय कर्म का प्रभाव आयुष्य कर्म का निरूपण आयुष्य कर्म का विस्तार आयुष्य कर्म १६ प्रकार से बाँधे आयुष्य कर्म ४ प्रकार से भोगे आयुष्य कर्म का प्रभाव नामकर्म का निरूपण नामकर्म का विस्तार नामकर्म ८ प्रकार से बाँधे नामकर्म २८ प्रकार से भोगे नामकर्म का प्रभाव गोत्रकर्म का निरूपण गोत्रकर्म की १६ प्रकृतियाँ गोत्रकर्म १६ प्रकार से भोगे गोत्रकर्म का प्रभाव अंतराय कर्म का निरूपण अंतराय कर्म की ५ प्रकृतियाँ अंतराय कर्म बंध ५ प्रकार से भोगे अंतराय कर्म का प्रभाव कर्मबंध की परिवर्तनीय अवस्था के १० कारण अन्य परंपरा में तीन अवस्थाएँ कर्मबंध का मूल कारण : रागद्वेष राग या द्वेष में नुकसानकारक कौन? प्रशस्त राग अप्रशस्त राग और उनके प्रकार २०७ २०७ २१० २११ २११ २१२ २१२ २१३ २१३ २१३ २१४ २१६ २१६ २१७ २२० २२१ २२२ २२३ २२४
SR No.002299
Book TitleJain Darm Me Karmsiddhant Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhaktisheelashreeji
PublisherSanskrit Prakrit Bhasha Bhasha Vibhag
Publication Year2009
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy