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पांच कारणवादों का समन्वय
भगवान महावीर का यह सिद्धांत है कि ये पांचों कारण समन्वित होने पर ही कर्मवाद के पूरक एवं सहयोगी बनते हैं। ये पांचों सापेक्ष हैं और अपने-अपने स्थान पर ठीक हैं। काल, प्रकृति की वस्तु को व्यवस्थित रूप से परिणमन होने में एक प्रमुख भूमिका निभाता है। प्रत्येक पदार्थ का स्वभाव भी उसके द्वारा कार्य होने में सहायक तत्त्व है । नियति सार्वभौम जागतिक नियम युनिवर्सल लॉ है। जो प्रत्येक कार्य के साथ समान रूप से लागू होता है। व्यक्ति ने मन-वचन-काया से जाने, अनजाने, पूर्वकाल में स्थूल सूक्ष्मरूप में जो कुछ किया, कराया था, अनुमोदन किया हो, उस क्रिया का अंकन कर्मबंधन के रूप में होता है और फिर समय आने पर उस क्रिया की प्रतिक्रिया होती है । यही पुराकृत कर्म है, जो प्रत्येक 'अच्छी बुरी घटना के साथ होता है। वर्तमान में जो क्रिया की जाती है, जिसमें कर्मों का आस्त्रव या बंध तथा संवर, निर्जरा या मोक्ष होता है, वह पुरुषार्थ है । वैसे देखा जाये तो कर्म और पुरुषार्थ एक ही सिक्के के दो पहलु हैं । कर्म पहले किया हुआ (अतीत का ) पुरुषार्थ है। पुरुषार्थ करने का प्रथम क्षण पुरुषार्थ कहलाता है और उसके व्यतीत हो जाने पर वही पुरुषार्थ अतीत हो जाने से कर्म कहलाने लगता है । ७०
विद्याध्ययन करने वाला यदि विद्वान बनना चाहता है, तो विद्यार्थी को भी इन पांचों कारणों का विचार करना आवश्यक है। अध्ययन करने में चित्त की एकाग्रतारूप स्वभाव, तत्पश्चात् पढने में समय का योगदान फिर अध्ययन करने का पुरुषार्थ ये तीनों तो आवश्यक है ही, साथ ही पढनेवाले के ज्ञानावरणीय कर्म का क्षय क्षयोपशम का तथा शुभकर्म का उदय हो एवं प्रकृति के नियम की अनुकूलता (नियति) और भवितव्यता का भी ध्यान रखना चाहिए ।
मोक्षप्राप्ति में पंचकारण समवाय
मोक्ष प्राप्ति जैसे कार्य के लिए भी पांचों कारणों का समवाय आवश्यक है । काल भी मोक्ष प्राप्ति में अनिवार्य है । काल के बिना संपूर्ण कर्म मोक्षरूप कार्य की सिद्धि असंभव है। यदि काल को ही कार्य कारण मान लिया जाए, तब तो अभव्य जीव भी मोक्ष प्राप्त करेंगे, परंतु उनका स्वभाव मोक्ष प्राप्त करने का नहीं है । भव्यों का ही मोक्ष प्राप्ति का स्वभाव हो से वे ही मोक्ष प्राप्त कर सकेंगे। यदि काल और स्वभाव दोनों को मोक्षरूप कार्य के कारण मान लिया जाएँ, तो सभी भव्य एक साथ मोक्ष में चले जायेंगे, ऐसा असंभव है, किन्तु इन दोनों के साथ नियति का योग जिन्हें मिलेगा वे ही भव्य जीव समय पर मोक्ष में जाएँगें । यदि 1. काल, स्वभाव और नियति ये तीनों ही मोक्ष प्राप्ति के कारण मान लिये जायें तो मगधराज श्रेणिक कभी के मोक्ष के अनुरूप संपूर्ण कर्मों को क्षय करने का पुरुषार्थ नहीं कर सके,