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________________ 145 उद्यम से बडे-बडे अभेद्य दुर्ग मनुष्य ने बनाये, अणुबम, उद्जनबम आदि भी बनाये, जिनसे सारे विश्व को कंपित किया जा सकता है। उद्यम द्वारा मानव ने जल, स्थल और आकाश पर विजय प्राप्त की तथा विविध यानों द्वारा द्रुत गमन करने लगा। बडे-बडे बाँध और सरोवर उद्यम के ही प्रतिफल हैं। मोक्षमार्ग की साधना में पुरुषार्थ करके मानव कर्मों की जंजीरों को तोडकर मुक्त हो जाता है। भरत और बाहुबली जो एक दिन परस्पर युद्धरत थे, संघर्ष मग्न थे, अपने सम्यक् पुरुषार्थ से कर्मों को क्षय करके उसी भव में मोक्ष प्राप्त करते हैं। अर्जुनमाली जैसा क्रूर हत्यारा भी तप, संयम, क्षमा, समता आदि धर्म साधना में पुरुषार्थ करके छह महिने में समस्त कर्मों को क्षय करके सिद्ध बुद्ध मुक्त हो जाते हैं । ६८ दृढ संकल्प, लगन और उत्साह के साथ पुरुषार्थ करने से कठिन कार्य भी सिद्ध हैं । पुरुषार्थ के बल पर ही तेनसिंह और हिलेरी ने हिमालय की २९२०२ फीट ऊँची सर्वोच्च चोटी भी सर कर ली थी। प्रबल पुरुषार्थी के लिए प्रकृति भी सहायक हो जाती है, वह भी मार्ग प्रशस्त कर देती है । अतः पांचों कारणों में पुरुषार्थवाद ही विश्व वैचित्र्य का प्रबल कारण है । इसलिए एक 'महान् आचार्य ने कहा है 'कुरु कुरु पुरुषार्थ निर्वृतानन्दहेतोः ।' मोक्ष के परम आनंद को पाने के लिए पुरुषार्थ करो । पुरुषार्थवाद समीक्षा प्रत्येक कार्य की सिद्धि में पुरुषार्थ भी एक कारण है, परंतु यदि काल अनुकूल न हो, उस वस्तु का वैसा बनने या करने या स्वभाव न हो, वह विश्व के अटल नैसर्गिक नियम के विरुद्ध हो तथा पुरुषार्थ करने वाले के पूर्वकृत कर्म अनुकूल न हों तो, चाहे जितना पुरुषार्थ. करने पर भी वह कार्य सिद्ध नहीं हो पाता । गौतम गणधर तप, संयम के धनी थे, प्रबल पुरुषार्थी थे, भगवान महावीर के प्रमुख अंतेवासी पट्ट शिष्य थे । ६९ कर्मों को जीतने का वे सतत पुरुषार्थ करते रहे, परंतु जब तक काल नहीं पकता तब तक उनके मन से भगवान महावीर के प्रति जो प्रशस्त राग ( शुभमोह) था, वह क्षीण न हो सका। उनका पुरुषार्थ तब कृतकार्य हुआ, जब उन्होंने अपने स्वभाव से उस प्रशस्त राग को भी दूर किया। फलतः घाति कर्म भी नष्ट हुए और काल लब्धिक अनुकूलता हुई। इसलिए एकान्त पुरुषार्थवाद को मानना श्रेयस्कर नहीं है।
SR No.002299
Book TitleJain Darm Me Karmsiddhant Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhaktisheelashreeji
PublisherSanskrit Prakrit Bhasha Bhasha Vibhag
Publication Year2009
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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