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जैनदृष्टि से कर्मवाद का समुत्थानकाल
वर्तमान युग तर्क प्रधान है। शिक्षित, अध्यात्म प्रेमियों तथा जैनेतर जिज्ञासुओं समाधान हेतु ऐतिहासिक प्रमाण के आधार पर कर्मवाद का उद्भव और आविर्भाव हुआ है, यद्यपि कर्मतत्त्व संबंधी प्रक्रिया इतनी प्राचीन है कि उस विषय में निश्चितरूप से कुछ भी नहीं कहा जा सकता कि कर्मवाद का समुत्थान और विकास कब से प्रारंभ हुआ? इतना अवश्य कहा जा सकता है कि पूर्वकाल में भी कर्मतत्त्व चिंतकों में परस्पर विचार विमर्श पर्याप्त मात्रा . हुआ करता था । प्रत्येक निवर्तक धारा के चिंतक वर्गों ने अपने दर्शन में कर्मवाद का एक या दूसरे रूप में अवश्य ही विचार किया है। ऐतिहासिक दृष्टि से जैन मनीषियों ने १४ पूर्व शास्त्रों में से कर्मप्रवाद पूर्व के रूप में उपनिबद्ध एवं विश्रुत हुई है।
'यह बात निर्विवाद सिद्ध है कि इस समय जो जैन धर्म श्वेतांबर, दिगंबर शाखा रूप में वर्तमान है। इस समय जितना जैन तत्त्वज्ञान है, और जो विशिष्ट परंपरा है वह भ महावीर के विचार का चित्र है । अतः कर्मवाद के समुत्थान का यही समय अशंकनीय समझना चाहिए।
कर्मवाद के समुत्थान का मूल स्रोत
श्वेतांबर और दिगंबर दोनों ही परंपराएँ समान रूप से मानती हैं कि बारह अंग और .चौदह पूर्व भगवान महावीर के विशद उपदेशों का साक्षात् फल है। वर्तमान में उपलब्ध समग्र कर्मशास्त्र शब्द और भावरूप से भगवान महावीर के द्वारा गणधर देवों के समक्ष साक्षात् उपदिष्ट है।४३
दूसरा अभिमत यह है कि समस्त अंग शास्त्र ( द्वादशांगी) भावरूप से भगवान महावीर कालिक ही नहीं अपितु, पूर्व में हुए अन्यान्य तीर्थंकरों से भी पूर्वकाल का है, अर्थात् वह अनादि है, किन्तु प्रवाह रूप से अनादि होते हुए भी समय-समय पर होनेवाले तीर्थंकरों द्वारा वे अंगशास्त्र (अंगविद्याएँ) नया नया रूप धारण करती रहीं । ४४ गणधरदेव अर्थरूप (भावरूप से) उपदिष्ट अंग विद्याओं को शब्दबद्ध, सूत्रबद्ध एवं व्यवस्थित रूप से संकलित, ग्रथित करते हैं। समवायांग, ४५ विशेषावश्यक भाष्य ४६ में भी यही कहा है।
जैन आगमों में से कोई भी आगम या द्वादशांगी के दृष्टिवाद को छोडकर ग्यारह अंगों में से कोई भी अंगशास्त्र ऐसा नहीं है, जिसमें केवल कर्मवाद संबंधी विस्तृत विवेचन हो । वर्तमान में उपलब्ध जैन आगमों में जैन कर्मवाद का स्वरूप एवं विवेचन अमुक प्रमाण में किसी एक दो अध्ययन शतक या उद्देशक में छुटपुट रूप में हुआ है, वह भी हु ही संक्षेप में है। अत: इतने अल्प प्रमाण में उपलब्ध विवेचन कर्मवाद के महत्त्व एवं रहस्य को उजागर