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________________ 129 श्रीमद् भागवत१९ में ऋषभदेव का बहुत विस्तार से वर्णन है। अन्य पुराण ग्रंथों में भी ऋषभदेव के जीवन प्रसंग का वर्णन है। बौद्ध परंपरा के महनीय ग्रंथ धम्मपद में भी ऋषभदेव को सर्वश्रेष्ठ और धीर प्रतिपादित किया है।२० कर्मवाद का प्रथम उपदेश : भगवान ऋषभदेव द्वारा सूत्रकृतांग सूत्र में भगवान ऋषभदेव ने अपने पुत्रों को उपदेश दिया कि 'हे पुत्रों! तुम संबोध प्राप्त करो, समझो। यह भौतिक राज्य, सुख संपदा, भोग सामग्री आदि प्राप्त भी कर ली तो भी तुम्हें शांति, समाधि और स्वतंत्रता नहीं मिलेगी। यहाँ यह मौका चूक गये तो परलोक में संबोधि का पाना बहुत दुर्लभ है। जो रात्रियाँ बीत जाती हैं वे लौटकर वापस नहीं आती और यह मनुष्य जीवन भी जो कर्मों का सर्वथा क्षय कर के मोक्ष पाने के लिए है, पुनः सुलभ नहीं है।२१ श्रीमद् भागवत पुराण में भगवान ऋषभदेव ने अपने पुत्रों को उपदेश देते हुए कहा कि हे पुत्रो, काम भोगों पर गर्व न करो, इन भोगों को तो विष्टा खाने वाले शूकर आदि पशु भी भोगते हैं। तुम राजपुत्र हो, तुम्हारा यह शरीर काम भोगों के सेवन के लिए नहीं, किन्तु कर्म. मुक्ति के हेतु दिव्यतप करने के लिए है, जिससे अंत:करण शुद्ध हो क्योंकि शुद्ध अंत:करण में अनंत ब्रह्म (आत्मा) सुख की प्राप्ति होती है।२२ ___ भगवान ऋषभदेव ने अपने पुत्रों को कितनी सुंदर प्रेरणाएँ दी हैं। उन्होंने स्वयं ने संयम, तप, त्याग और वैराग्य में अपनी आत्मा को विशुद्ध एवं कर्ममलरहित बनाने की देशना दी है।२३ सूत्रकृतांगसूत्र २४ जवाहर किरणावली२५ और त्रिषष्ठिशलाकापुरुषचरित्र२६ में भी यह कहा है। इससे स्पष्ट ध्वनित होता है कि आदि तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव कर्मवाद के रहस्य और धर्माचरण में पुरुषार्थ के पुरस्कर्ता थे, इसलिए यह नि:संदेह कहा जा सकता है कि प्रागैतिहासिक काल में कर्मवाद का आविर्भाव जैनदृष्टि से आदि तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव के युग में हुआ है। कर्मवाद का आविर्भाव क्यों और कब? आविर्भाव या आविष्कार आवश्यकता होने पर होता है। संसार में कोई भी वस्तु ऐसी नहीं है, जिसका आविष्कार आवश्यकता के बिना हुआ हो। पाश्चात्य जगत् का यह माना हुआ सिद्धांत कि आवश्यकता आविष्कार की जननी है' । २७ जब मनुष्य को कृत्रिम प्रकाश की आवश्यकता हुई तो बिजली का आविष्कार हुआ। जब उसे समुद्र के अथाह जल पर सही सलामत चलने और अपने गन्तव्य स्थान पर पहुँचने की इच्छा हुई तो उसने स्टीमर (वाष्पजलयान) का आविष्कार किया, जो एक ही साथ सैकड़ों टन वजन अपनी छाती पर
SR No.002299
Book TitleJain Darm Me Karmsiddhant Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhaktisheelashreeji
PublisherSanskrit Prakrit Bhasha Bhasha Vibhag
Publication Year2009
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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