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कर्म शब्द के विभिन्न अर्थ और रूप कर्म का सार्वभौम साम्राज्य जैनदृष्टि से कर्म के अर्थ में क्रिया और हेतुओं का समावेश पुद्गल का योग और कषाय के कारण कर्मरूप में परिणमन विभिन्न परंपराओं में कर्म के समानार्थक शब्द कर्म के दो रूप : भावकर्म और द्रव्यकर्म द्रव्यकर्म और भावकर्म की प्रक्रिया निमित्त नैमित्तिक श्रृंखला भावकर्म की उत्पत्ति में द्रव्यकर्म कारण क्यों मानें ? भावकर्म की उत्पत्ति कैसे? योग और कषाय आत्मा की प्रवृत्ति के दो रूप जितना कषाय तीव्र-मंद उतना ही कर्म का बंध तीव्र-मंद कर्म संस्कार रूप भी पुद्गल रूप भी आत्मा की वैभाविक क्रियाएँ कर्म हैं प्रमाद ही संस्कार रूप कर्म (आस्रव) का कारण कार्मण शरीर : कार्य भी है कारण भी है पुद्गल का कर्म रूप में परिणमन कैसे? जीव के रागादि परिणमन में पौद्गलिक कर्म निमित्त जीव पुद्गल कर्मचक्र संदर्भ-सूची
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