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________________ 123 १२५ १२५ १२६ १२६ १२७ १२८ १२९ १२९ १३० १३१ १३१ س तृतीय प्रकरण कर्मवाद का ऐतिहासिक पर्यालोचन जैनदृष्टि से कर्मवाद का आविर्भाव कर्मप्रवाह तोडे बिना परमात्मा नहीं बनते कर्मवाद के अविर्भाव का कारण भगवान ऋषभदेव द्वारा कालानुसार जीवन जीने की प्रेरणा कर्ममुक्ति के लिए धर्मप्रधान समाज का निर्माण धर्म-कर्म-संस्कृति आदि का श्रीगणेश कर्मवाद का प्रथम उपदेश : भगवान ऋषभदेव द्वारा कर्मवाद का आविर्भाव क्यों और कब? कर्मवाद का आविष्कार क्यों किया गया? तीर्थंकरों द्वारा अपने युग में कर्मवाद का आविर्भाव भगवान महावीर द्वारा कर्मवाद का आविर्भाव गणधरों की कर्मवाद संबंधी शंकाओं का समाधान जैनदृष्टि से कर्मवाद का समुत्थानकाल कर्मवाद के समुत्थान का मूल स्रोत कर्मवाद का विकास क्रम : साहित्य रचना के संदर्भ में विश्व वैचित्र्य के पांच कारण प्रत्येक कार्य में पांच कारणों का समवाय और समन्वय एकांत कालवाद एकांत स्वभाववाद एकांत नियतिवाद कर्मवाद मीमांसा कर्मवाद समीक्षा पुरुषार्थवाद की मीमांसा पुरुषार्थवाद की समीक्षा पांच कारणवादों का समन्वय मोक्षप्राप्ति में पंचकारण समवाय सर्वत्र पंचकारण समवाय से कार्य सिद्धि س or or or mms . س س س १३९ १४० १४० १४० १४१ १४२ १४४ १४५ १४५ १४६ १४७
SR No.002299
Book TitleJain Darm Me Karmsiddhant Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhaktisheelashreeji
PublisherSanskrit Prakrit Bhasha Bhasha Vibhag
Publication Year2009
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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