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________________ 101 प्रेतात्मा द्वारा प्रिय पात्र को अदृश्य सहायता कभी-कभी यह आसक्ति इतनी गहरी होती है कि प्रेतात्मा अपने प्रियपात्र को अदृश्य रूप से सहायता भी करते हैं। सन् १९६१ के जून मास की घटना है। स्ट्रामबर्ग का जेम केलघन शराब के नशे में रात्रि में घूम रहा था अचानक पीछे से आवाज आयी, 'रुको केलघन ।' उसने पीछे मुडकर देखा तो कोई दिखाई नहीं दिया अब भी आवाज गुंज रही थी फिर उसे आवाज सुनाई दी। बेटा! सहसा इस आवाज को सुनकर उसे अपनी माँ का ध्यान आया जो २७ वर्ष पूर्व मर चुकी थी। सोचने लगा क्या यह उसकी माँ की प्रेतात्मा है? इस पर पुन: अदृश्य आवाज आयी बेटा तू मद्यपान करता है इसे छोडना चाहिए। तुम नहीं जानते कि मुझे कितना कष्ट हो रहा है। जब तक तुम इस दुष्कृत्य को नहीं छोडोगे तब तक मुझे शांति नहीं मिलेगी। माँ की इस बात को सुनकर केलघन का दिल दहल गया। उसने तत्काल मन में संकल्प किया आज से मैं शराब नहीं पीऊँगा तथा श्रेष्ठ बनूँगा। फिर केलघन ने कहा 'यदि तुम मेरी माँ हो तो अपने हाथों से छूकर प्रतीति कराओ' इतना कहते ही माँ की प्रेतात्मा ने अपना हाथ केलघन की कमीज की बाह पर रख दिया। माँ के हाथ का चिह्न कमीज की बाह पर उभर आया, जो आज भी लंदन के 'परगेटरी म्युजियम' (हाऊस ऑफ शैडोज) में सुरक्षित है। ____महारानी विक्टोरिया के पति प्रिंस अलबर्ट मृत्यु के पश्चात् भी प्रिय पत्नी को समयसमय पर अच्छे सुझाव देते रहे। . नेपोलियन जब सेंट हेलेना में निर्वासित जीवन बीता रहा था। उनकी मृत पत्नी जोसेफाइन की आत्मा ने नेपोलियन के मृत्यु की सूचना दी थी।१३२ फोटो द्वारा सूक्ष्म शरीर का अस्तित्व वर्तमान युग में सूक्ष्म शरीर के फोटो लेने के प्रयोग भी प्रारंभ हुए है। प्रसिद्ध वैज्ञानिक 'किरलियॉन' दंपत्ति ने एक विशिष्ट प्रकार की फोटो पद्धति आविष्कृत की है, उसके द्वारा वे सूक्ष्म शरीर के फोटो ले लेते हैं। इस प्रकार के फोटो में मरते हुए व्यक्ति के शरीर की कोई आकृति शरीर से निकलती है और बाहर जाती दिखाई देती है। इस प्रयोग ने आध्यात्मिक क्षेत्र में और विशेषतया पूर्वजन्म को प्रत्यक्ष सिद्ध करने में अभूतपूर्व क्रान्ति लाई है। यह सूक्ष्मतर शरीर जैन कर्म विज्ञान के अनुसार तैजस युक्त कार्मण शरीर ही कर्मों के अस्तित्व का प्रमाण है। फलत: कार्मण शरीर द्वारा यानी कृतकर्मों के विपाक के रूप में अगले जन्म में प्रवेश की बात स्वत:सिद्ध हो जाती है। १३३
SR No.002299
Book TitleJain Darm Me Karmsiddhant Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhaktisheelashreeji
PublisherSanskrit Prakrit Bhasha Bhasha Vibhag
Publication Year2009
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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