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दाहिना हाथ रखा। शीघ्र ही लाहिडी के शरीर में विद्युत की सी शक्ति और प्रकाश भरने लगा, तन्द्राएँ जागृत हो उठीं, मन का अंधकार दूर होने लगा, ऋतम्भरा प्रज्ञा जाग उठी, अलौकिक अनुभूतियाँ होने लगीं। लाहिडी ने देखा 'मैं पूर्वजन्म में योगी था। ये साधु मेरे गुरु हैं, जो हजारों वर्षों की आयु हो जाने पर भी शरीर को अपनी योग क्रियाओं द्वारा धारण किये हुए हैं।' लाहिडी को याद आया कि 'पिछले जन्म में उन्होंने योगाभ्यास तो किया, मगर सुखोपभोग की वासनाएँ नष्ट नहीं हुई, फिर अव्यक्त दृश्य भी व्यक्तवत् और गहरे होते चले गये, जिनमें उनके अनेक जन्मों की स्मृतियाँ साकार होती चली जा रही थी।' इस प्रकार श्री लाहिडी ने अपने पिछले अनेक जन्मों के दृश्यों से लेकर वहाँ पहुँचने तक का सारा वर्णन चलचित्र की भाँति देख लिया।' ___ इस प्रकार लाहिडी द्वारा अनेक पूर्वजन्मों का प्रत्यक्षवत् दर्शन, आत्मा और कर्म के चिरकालीन अस्तित्व को सिद्ध करता है। आत्मा के साथ प्रवाह रूप से कर्म का अनादित्व माने बिना पूर्वजन्म और पुनर्जन्म का सिद्धांत घटित हो ही नहीं सकता।१२४ विनोबाभावे ने अपने बारे में कहा था मुझे यह प्रतीत होता है कि मैं पूर्वजन्म में बंगाली योगी था।' साथ ही जिन वस्तुओं के प्रति जन सामान्य में प्रबल आकर्षण होता है, उनके प्रति विनोबा में कदापि आकर्षण नहीं हुआ। इसे वे अपने पिछले जन्म की कमाई मानते थे। १२५ . निष्कर्ष यह है कि परामनोवैज्ञानिकों द्वारा प्रस्तुत पूर्वजन्म और पुनर्जन्मों की स्मृति की अनेक घटनाएँ हैं जो सिद्ध करती हैं कि मरने के साथ ही जीवन का अंत नहीं हो जाता। अनेक जन्मों के कर्मफल, एक जन्म या अनेकों जन्मों के बाद मिलने की बात भी प्रमाणित हो जाती है, आत्मा का स्वतंत्र अस्तित्व मानने से यह भी सिद्ध हो जाता है कि सभी पुनर्जन्मों का मूलाधार व्यक्ति के पूर्वकृत कर्म ही हैं। प्रेतात्माओं का साक्षात् संपर्क : पुनर्जन्म की साक्षी ___ मरणोत्तर जीवन के दो प्रमाण ऐसे हैं, जिन्हें प्रत्यक्षरूप में देखा समझा और परखा जा सकता है। १) पूर्वजन्म की स्मृतियाँ, २) प्रेत जीवन का अस्तित्व
परामनोवैज्ञानिकों ने इस विषय में भी पर्याप्त अनुसंधान किये हैं। खास तौर पर पाश्चात्य देशों में प्रेतविशारदों ने पूर्वजन्म की आसक्ति, मोह, घृणा, द्वेष आदि से बद्धकर्म संस्कारों से अगले जन्म में प्राप्त प्रेतयोनि की स्थिति के विषय शोध और प्रयोग किये हैं। सर ऑलिवरलॉज, सर विलियम वारेट, रिचर्ड हडसन आदि परामनोवैज्ञानिकों ने विभिन्न प्रेतों से स्नेहपूर्वक संपर्क स्थापित करके गंभीर खोजे की हैं। इस प्रकार उन्होंने भारतीय धर्मों और दर्शनों द्वारा मान्य परलोक वाद की सत्यता को परिपुष्ट किया है। इतना ही नहीं, आत्मा तथा कर्म और कर्मफल के प्रवाह रूप से अनादि अस्तित्व को भी प्रमाणित किया है। १२६