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________________ 98 सभी धर्मों में पूर्वजन्म की सिद्धि ईसाई, मुसलमान, जैन, बौद्ध, हिंदु आदि सभी धर्म परंपरा के बच्चों की पूर्वजन्म और पुर्नजन्म की स्मृति की घटनाएँ परामनोवैज्ञानिकों ने एकत्र की हैं और उन पर पर्याप्त जाँच पडताल करने के पश्चात् वे सभी घटनाएँ सत्य सिद्ध हुई । इस पर से परामनोवैज्ञानिकों का कथन है कि 'पूर्वजन्म और पुनर्जन्म का सिद्धांत उपहासास्पद, भ्रान्तियुक्त या अंधविश्वास पूर्ण नहीं है अपितु यह सत्य और प्रत्यक्ष अनुभव के धरातल पर स्थित अकाट्य सिद्धांत है।' कुछ वर्षों पूर्व गीताप्रेस गोरखपुर से प्रकाशित कल्याण (मासिकपत्र) के पुनर्जन्म विशेषांक में देश विदेश के सभी धर्मपरंपरा के बालकों की पूर्वजन्म स्मृति से संबंधित आश्चर्यजनक एवं रोचक सच्ची घटनाएँ छपी हैं। इन सभी घटनाओं पर पाश्चात्य विचारकों को भी पूर्वजन्म और पुनर्जन्म के सिद्धांत के अध्ययन की ओर आकर्षित किया है । १२१ कल्याण मासिक पत्र में भी इस बात का उल्लेख है । १२२ पूर्वजन्म की स्मृति कैसे कैसे लोगों को होती है? पूर्वजन्म का स्मरण किस प्रकार के लोगों को रहता है, इस संबंध में डॉ. स्टीवेसन आदि परामनोवैज्ञानिकों ने बताया कि जिनकी मृत्यु प्रचण्ड भयंकर आवाज सुनकर या अग्निशस्त्र देखकर अथवा बिजली गिरने आदि के भय, आशंका, अभिरुचि, बुद्धिमत्ता, उत्तेजनात्मक आवेशग्रस्त मनः स्थिति में हुई हो, उन्हें पिछले जन्म की स्मृति अधिक स्पष्ट होती है, अथवा दुर्घटना, हत्या, आत्महत्या, अतृप्ति, कातरता, उद्विग्नता अथवा मोहग्रस्त युकत 'चित्तविक्षोभकारी पिछले जन्म के घटनाक्रम भी स्मृति पटल पर उभरते रहते हैं । पिछले जन्म के कला कौशल विशिष्ट स्वभाव या आदत अथवा शौक की भी छाप किसी . किसी बालक में वर्तमान जन्म में बनी रहती है। जिनसे अधिक प्यार या अधिक द्वेष रहा है वे लोग भी इस जन्म में विशेष रूप से याद आते हैं । १२३ पुनर्जन्म का ज्ञान एवं स्मरण प्रसिद्ध योगी श्यामचरण लाहिडी ने जीते जी अपने पिछले अनेक जन्मों के दृश्य प्रत्यक्षवत् देखे थे। उस समय सन् १८६१ में वे दानापुर केट (पटना) में एकांउटेंट थे। अचानक उन्हें तार मिला, रानीखेत में ट्रान्सफर के आदेश का, वे वहाँ से रानीखेत पहुँचें । वहाँ ऑफिस का काम करते समय उनके कानों में बार-बार आवाज आयी, निकटवर्ती द्रोण पर्वत पर पहुँच ने की। वे तीसरे दिन द्रोण पर्वत पर पहुँचे। वहाँ एक अदृश्य अजनबी के अपने पास आने के लिए आवाज आयी। वे प्रकाश पूंज के पास पहुँचे। एक योगीराज एक गुफा के द्वार पर खडे मुस्कुराए। उन्होंने श्यामचरण को संबोधित करके अपने पास बुलाने का कारण बताया। फिर श्रद्धाभिभूत योगिराज ने लाहिडी के मस्तक पर अपना
SR No.002299
Book TitleJain Darm Me Karmsiddhant Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhaktisheelashreeji
PublisherSanskrit Prakrit Bhasha Bhasha Vibhag
Publication Year2009
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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