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________________ 97 अनुभव आदि प्रस्तुत किये गये थे वे निरर्थक नहीं हुए। बल्कि उनकी सार्थकता और पुष्टि में चार चाँद लग गये । परामनोविज्ञान विज्ञान की ही एक शाखा है। सर्वप्रथम आत्मा के अस्तित्व को सिद्ध करने हेतु मनोवैज्ञानिक ने पूर्वजन्म और पुनर्जन्म को जानने का प्रयत्न किया, उनके इस कार्य को आगे बढाने के लिए परामनोवैज्ञानिक आगे आये । परामनोवैज्ञानिक द्वारा प्रस्तुत चार तथ्य उन्होंने प्रत्यक्ष प्रयोग करके पूर्वजन्म और पुनर्जन्म के अस्तित्व को सिद्ध करने के साथ-साथ आत्मा के अनादित्व को और प्रवाहरूप से कर्म के अनादित्व को भी सिद्ध कर दिया है। इतना ही नहीं, परामनोविज्ञान ने विविध घटनाओं की जाँच करके चार तथ्य प्रस्तुत किये हैं १) किसी किसी को मृत्यु होने से पूर्व अथवा किसी को अकस्मात ही भविष्य में घटित होने वाली घटना का पहले से ही आभास ( पूर्वाभास) हो जाता है । २) भविष्य के ज्ञान की तरह अतीत (पूर्वजन्म) का भी ज्ञान हो सकता है। ३) कुछ लोगों को किसी भी प्रकार का माध्यम बिना प्रत्यक्ष ज्ञान हो जाता है अर्थात् किसी भी वस्तु या व्यक्ति के विषय में वह साक्षात् जान लेता है। ४) बिना किसी माध्यम के एक व्यक्ति हजारों कोसों दूर बैठे हुए व्यक्ति को अपने विचार प्रेषित कर सकता है । ११९ पुनर्जन्म, आत्मा और कर्म के अस्तित्व की सिद्धि परामनोवैज्ञानिकों द्वारा प्रयोग सिद्ध इन चार तथ्यों के आधार पर उन लोगों को भी यह सोचने के लिए बाध्य होना पडा जो यह मानते थे कि मृत्यु के बाद जीवन नहीं है। आत्मा और कर्म का अस्तित्व नहीं है या आत्मा और कर्म इस जन्म तक ही है, उनका चिरकाल स्थायित्व नहीं है। कुछ धर्मवाले पुनर्जन्म को नहीं मानते हैं, इसलिए यदि कोई बालक तरह की बातें करें तो उसे शैतान का प्रकोप समझकर उसे डरा धमकाकर उसका मुँह बंद कर देते, परंतु मिथ्या कल्पना अंधविश्वास और किंवदन्तियों की सीमाओं को तोडकर प्रामाणिक व्यक्तियों के द्वारा किये गये अन्वेषणों से ऐसी घटनाएँ सामने आती रहती हैं, जिनसे पूर्वजन्म ● और पुनर्जन्म दोनों तथ्य भलीभाँति सिद्ध हो जाते हैं । परामनोवैज्ञानिकों ने उनकी आँखे ख़ोल दी हैं, और उन्हें यह मानने को बाध्य होना पडता है कि पूर्वजन्म भी है और पुनर्जन्म भी है। आत्मा और कर्म का अस्तित्व चिरस्थायी है । १२०
SR No.002299
Book TitleJain Darm Me Karmsiddhant Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhaktisheelashreeji
PublisherSanskrit Prakrit Bhasha Bhasha Vibhag
Publication Year2009
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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