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________________ 96 को जानकर उन पर विजय प्राप्त कर ली, तब इन्द्र ने उनकी विभिन्न प्रकार से परीक्षा की, उसमें उत्तीर्ण होने पर प्रशंसात्मक स्वर में इन्द्र ने कहा- 'भगवान! आप इस लोक में भी उत्तम है, आगामी (परलोक) में भी उत्तम होंगे, अंत में कर्ममल से रहित होकर आप लोक के सर्वोत्तम स्थान सिद्धि (मुक्ति-मोक्ष) को प्राप्त करेंगे।११५ परामनोवैज्ञानिकों की दृष्टि से पुनर्जन्म और कर्म पूर्वजन्म और पुनर्जन्म के अस्तित्व के संबंध में विभिन्न दार्शनिकों, पाश्चात्य विद्वानों धर्मग्रंथों में बताये हुए प्रमाणों से पूर्वजन्म और पुनर्जन्म के अस्तित्व सिद्ध करने का प्रयास किया है तथा जैन दर्शन के अनुसार आप्त पुरुषों (प्रत्यक्षज्ञानियों) के वचन भी प्रस्तुत किये हैं। फिर भी अल्पज्ञानियों के समक्ष जो भी प्रमाण, युक्तियाँ, तर्क, आप्त वचन आदि रखे हैं उनकी दृष्टि में ये सभी बातें हृदय ग्राही नहीं हैं क्योंकि पूर्वजन्म और पुनर्जन्म में बुद्धि और तर्क के द्वारा अन्तिम निर्णय नहीं होता, इस हेतु परामनोवैज्ञानिकों ने इस शाश्वत् प्रश्न को समाहित करने का बीडा उठाया। पाश्चात्य जगत में मरणोत्तर जीवन के विषय में चर्चाविचारणा कई वर्षों पूर्व माइथोलोजी, मजहब, मेटाफिजिक्स और फिलोसॉफी का विषय था, किन्तु पिछले ६० वर्षों से पाश्चात्य देशों में तथा भारत में इस दिशा में परामनोवैज्ञानिकों ने पर्याप्त अनुसंधान और प्रयोग किये हैं और उनके प्रयोग सफल भी हुए हैं। परामनोवैज्ञानिकों ने पूर्वजन्म की स्मृति जिन जिन बालकों में होती थी उनका साक्षात्कार किया, उनके पूर्व जन्म के नाम, स्थान, संबंधो तथा वृत्तांतों की स्वयं जाँच की। पूर्णतया उस घटना की प्रमाणिकता की जाँच करने के बाद उन्होंने निष्कर्ष प्रस्तुत किये। इनमें ऐसे बच्चों की भी घटनाएँ हैं, जिन बच्चों के माता-पिता या वंश परंपरा में पुनर्जन्म को सामान्यतया नहीं माना जाता था। उन बच्चों ने जो पूर्वजन्म और पुनर्जन्म की बातें बताई, वे सचमुच आश्चर्यचकित करने वाली हैं।११६ जैनदर्शन में आत्मविचार११७ अखंड ज्योति११८ में भी इसका उल्लेख है। आत्मा और कर्म को अस्वीकार करने वाले तथा पूर्वजन्म और पुनर्जन्म को नहीं मानने वाले जिन जिन लोगों ने उन घटनाओं की गहरी जाँच की, परीक्षा की उन बच्चों का भी प्रत्यक्ष साक्षात्कार किया, और अंत में उन्हें स्वीकार करना पड़ा कि आत्मा है, कर्म है और पूर्वजन्म-पुनर्जन्म भी है। उन सत्य घटनाओं को वे असत्य कैसे सिद्ध कर पाते? उन बालकों के मुँह से कही हुई पूर्वजन्म की बातें सही निकली। इन परामनोवैज्ञानिकों ने समस्त परोक्ष ज्ञानियों के तर्को, युक्तियों प्रमाण एवं आप्त वचनों को बहुत पीछे छोड दिया, पूर्वजन्म की घटनाओं के अनुसंधान से उन्होंने प्रत्यक्षवत् सब कुछ सिद्ध कर बताया। इससे पूर्वजन्म और पुनर्जन्म के विषय में जो भी तर्क तथा
SR No.002299
Book TitleJain Darm Me Karmsiddhant Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhaktisheelashreeji
PublisherSanskrit Prakrit Bhasha Bhasha Vibhag
Publication Year2009
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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