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ईसा मसीह ने एक बार अपने शिष्यों से कहा था- 'मैं जीवन हूँ और पुनर्जीवन भी है, जो मेरा विश्वास करता है, सदा जीवित रहेगा, भले ही वह शरीर से मर चुका ही क्यों न हो।' यह कथन पुनर्जन्म के अस्तित्व को ध्वनित करता है।
बाइबिल की एक कथा में भी जीवन की शाश्वतता को प्रकट किया गया है- 'मृत्यु देखने के लिए ही जीवन का अन्त है। वस्तुत: कोई मरता नहीं, जीवन शाश्वत है।' ११२ यहूदी विद्वान सोलमन ने लिखा है 'इस जीवन के बाद भी एक जीवन है। देह मिट्टी में मिलकर एक दिन समाप्त हो जायेगी, फिर भी जीवन अंतकाल तक यथावत् बना रहेगा।'
एक बार प्लेटो ने सुकरात से पूछा- 'आप सभी विद्यार्थियों को एक सरीखा पाठ देते हैं, परंतु कोई विद्यार्थी उसे एक बार में कोई दो बार में और कोई तीन बार में सीख पाता है, इसका क्या कारण है?' सुकरात ने समाधान किया- 'जिन विद्यार्थियों ने पहले (पूर्वजन्म में) अभ्यास किया है, वे उस पाठ को शीघ्र समझ लेते हैं, जिन्होंने कम अभ्यास किया है, वे थोडा कम सीख पाते हैं, और जिन्होंने अभी (इस जन्म में) सीखना प्रारंभ किया है वे बहुत अधिक समय के बाद सीख समझ पाते हैं।' इस संवाद में पूर्व का न्यूनाधिक अभ्यास पूर्वजन्म को सिद्ध करता है।११३
डॉ. लिट्जर, डॉ. मूडी और डॉ. श्मिट आदि जिन-जिन पाश्चात्य वैज्ञानिकों ने जितनी भी मृत्यु पूर्व तथा मरणोत्तर घटनाओं के देश-विदेश के विवरण संकलित किये हैं उन सबका सार यह था कि मृत्यु जीवन का अंत नही है। मृत्यु के समय केवल आत्मचेतना ही शरीर से पृथक होती है।' इससे भारतीय मनीषियों की इस विचारधारा की पुष्टि होती है कि मृत्यु का अर्थ जीवन के अस्तित्व का अंत नहीं है। जीवन तो एक शाश्वत सत्य है उसके अस्तित्व का न तो आदि है न अंत।११४ पूर्वजन्म और पुनर्जन्म मानव जाति के लिए आध्यात्मिक उपहार ____ पुनर्जन्म और पूर्वजन्म का स्वीकार करना मानव जाति की अनिवार्य आवश्यकता है। इसके बिना परिवार समाज एवं राष्ट्र में नैतिक आध्यात्मिक मूल्यों को स्थिर नहीं किया जा सकता। अत: इस तथ्य को जानकर आत्मा का अस्तित्व शरीर त्याग के बाद भी बना रहेगा, वह जन्म जन्मांतर में संचित शुभाशुभ कर्मों को साथ लेकर अगले जन्म में धारावाहिक रूप से चलते रहते हैं। अत: इस जन्म में आध्यात्मिक विकास में पलभर भी प्रमाद न करके श्रेष्ठता की दिशा में कदम बढाना चाहिए। पुनर्जन्मवादी माननेवाला यदि इस जीवन का उत्तम ढंग से निर्माण करे तो अगला जीवन भी उत्तम बन सकता है।
उत्तराध्ययनसूत्र के नमिप्रवज्या अध्ययन में इसी तथ्य को प्रस्तुत किया गया है। पुनर्जन्म में दृढ विश्वासी नमिराजर्षि ने जब उत्तम जीवन निर्माण में बाधक राग-द्वेष काम-क्रोधादि