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________________ है। पूर्व शरीर का त्याग मृत्यु है और नये शरीर को धारण करना जन्म है। अगर वर्तमान शरीर के नाश एवं नये शरीर की उत्पत्ति के साथ-साथ नित्य आत्मा का नाश और उत्पत्ति मानी जाये तो कृतहान (किये हुए कर्मों की फल प्राप्ति का नाश) और अकृताभ्युपगम (नहीं किये हुए कर्मों का फल भोग) दोष आएगा। साथ ही उस आत्मा के द्वारा की गई अहिंसादि की साधना व्यर्थ जाएगी। आत्मा की नित्यता के इस सिद्धांत पर से पूर्वजन्म और पुनर्जन्म सिद्ध हो ही जाता है। जैन दर्शन तो आत्मा को ध्रुव, नित्य, शाश्वत, अविनाशी, अक्षय, अव्यय एवं त्रिकाल स्थाई मानता है।१०९ , पाश्चात्य दार्शनिक ग्रंथों में पुनर्जन्म पश्चिम जर्मन वैज्ञानिक डॉ. लोयर विद्जल ने लिखा है कि मृत्यु से पूर्व मनुष्य की अन्तश्चेतना इतनी संवेदनशील हो जाती है कि वह तरह-तरह के चित्र विचित्र दृश्य देखने लगता है। ये दृश्य उसकी धार्मिक आस्थाओं के अनुरूप होते हैं, अर्थात् जिस व्यक्ति का जिस धर्म में लगाव होता है, उसे उस धर्म, मत या पंथ की मान्यतानुसार मरणोत्तर जीवन में या मृत्यु से पूर्व वैसी ही आकृति एवं ज्योर्तिमय प्रकाश दिखाई देता है। उदा. हिन्दुओं को यमदूत या देवदूत दिखाई देते हैं। मुसलमानों को अपने धर्मशास्त्रों में उल्लेखित अनेक प्रकार की झाकियाँ दिखती हैं। ईसाइओं को भी उसी प्रकार बाइबिल में वर्णित पवित्र आत्माओं या दिव्यलोकों के दर्शन या अनुभव होते हैं।११० पाश्चात्य देशों के कई लोग, जिन्हें व्यक्तिगत रूप से किसी धर्म या मत विशेष के प्रति आकर्षण या लगाव नहीं था, ऐसे अनुभवों से गुजरे मानो एक दिव्य ज्योतिर्मय आकृति उनके समक्ष प्रकट हुई हो। ___ पाश्चात्य दार्शनिक गेहे फिश, शोलिंग, लेसिंग आदि ने अपने ग्रंथों में पुनर्जन्म का प्रतिपादन किया है। प्लेटो ने अपनी एक पुस्तक में लिखा है- 'जीवात्माओं की संख्या निश्चित है (उनमें घट बढ नहीं होती) मृत्यु के बाद नये जन्म के समय किसी नये जीवात्मा का सृजन नहीं होता, वरन् एक शरीर से दूसरे शरीर में प्रत्यावर्तन होता रहता है।' लिवनीज ने अपनी पुस्तक 'दी आयडियल फिलोसॉफी ऑफ लिबर्टीज' में लिखा है, 'मेरा विश्वास है कि मनुष्य इस जीवन से पहले भी रहा है।' प्रसिद्ध विचारक लेस्सिंग अपनी प्रख्यात पुस्तक 'दी डिवाइन एज्युकेशन ऑफ दी ह्युमन रेस' में लिखते हैं, 'विकास का उच्चतम लक्ष्य एक ही जीवन में पूरा नहीं हो जाता, वरन् कई जन्मों के क्रम से पूर्ण होता है। मनुष्य ने अनेक बार जन्म लिया है और अनेक बार लेगा।१११
SR No.002299
Book TitleJain Darm Me Karmsiddhant Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhaktisheelashreeji
PublisherSanskrit Prakrit Bhasha Bhasha Vibhag
Publication Year2009
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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