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________________ षष्ठम-प्रकरण २८१-३५४ कर्मों का स्रोत : आस्त्रव __कर्म प्रवेश : जीव में कैसे ? २८३, आस्रव की व्याख्याएँ २८५, आस्रव का लक्षण २८५, पुण्यास्रव और पापास्रव२८६, द्रव्यास्रव और भावास्रव २८६, ईर्यापथ और सांपरायिक आस्रव २८७, आस्रव के पाँच भेद २८७, मिथ्यात्व आस्रव २८८, अव्रत आस्रव २९०, प्रमाद आस्रव २९१, कषाय आस्रव २९२, योग आस्रव २९४,कर्मों का संवरण : संवर २९४, संवर की व्याख्याएँ २९५, मोक्षमार्ग के लिए संवर राजमार्ग २९६, सम्यक्त्व का लक्षण २९७, सम्यक्त्व के पाँच अतिचार २९८, सम्यक्त्व के भेद २९९, विरति २९९, अप्रमाद ३०१, अकषाय ३०२, अयोग ३०२,आस्रव और संवर में अंतर ३०३, निरास्रवी होने का उपाय ३०४,निष्कर्ष ३०५, संवर का महत्त्व ३०५, कर्मों का निर्जरण : निर्जरा ३०५, निर्जरा का अर्थ ३०६, निर्जरा के दो प्रकार ३०७, निर्जरा के बारह प्रकार ३०८, तप का महत्त्व ३१८, बंध का स्वरूप ३२०,बंध के दो भेद : द्रव्यबंध और भावबंध ३२१, बंध के चार भेद ३२१, कर्मों से सर्वथा मुक्ति ३२५, मोक्ष का स्वरूप ३२६, मोक्ष प्राप्ति के उपाय ३२७, मोक्ष के लक्षण ३२८, मोक्ष का विवेचन ३२८, विभिन्न दर्शनों में मोक्ष ३२९, जैन दर्शन में मोक्ष ३३१, द्रव्यमोक्ष और भावमोक्ष ३३२, कर्मक्षय का क्रम ३३३, मोक्ष : समीक्षा ३३३, कर्मक्षय का फल : मोक्ष ३३५, मोक्ष प्राप्ति का प्रथम सोपान सम्यक्त्व ३३६, सम्यक्दर्शन ३३७, सम्यक्ज्ञान ३३८, सम्यक्चारित्र ३४०, चारित्र के दो भेद ३४१, निश्चय चारित्र ३४१, व्यवहार चारित्र ३४२, अन्य दर्शनों में त्रिविध साधनामार्ग ३४३, संदर्भ-सूची ३४४. सप्तम प्रकरण ३५५-३८२ उपसंहार __ सुप्त शक्ति को जगाएँ ३५६, अनंतशक्ति का स्रोत कहा? ३५६, भारतीय दर्शन में साधना पथ ३५७, जैनसंस्कृति ३५८, भारतीय दर्शन और जैनदर्शन ३५८, विसर्जन से सर्जन ३५९, कर्म की महत्ता सभी क्षेत्रों में ३६०, कर्मसिद्धांत के मूल ग्रंथ आगम वाङ्मय ३६१, कर्म का अस्तित्व ३६३, कर्मवाद का ऐतिहासिक पर्यालोचन ३६६, कर्म का विराट स्वरूप ३६९, कर्मों की प्रक्रिया ३७२, कर्मों से सर्वथा मुक्ति : मोक्ष ३७६. संदर्भग्रंथ सूची ३८३-४०२ (१०)
SR No.002299
Book TitleJain Darm Me Karmsiddhant Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhaktisheelashreeji
PublisherSanskrit Prakrit Bhasha Bhasha Vibhag
Publication Year2009
Total Pages422
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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