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________________ १००८ पू. श्री आनंदऋषीजी महाराज, आत्मार्थी गुरुदेव पू. मोहनऋषीजी महाराज, पू. विनयऋषीजी महाराज, अनंत उपकारी, वात्सल्यवारिधी पू. माताजी बेन म०, परम पूजनीया ज्ञान एवं साधना की दिव्यज्योति, प्रातः स्मरणीया, विश्वसंत गुरुणी मैया महासतीजी श्री उज्ज्वलकुमारीजी महाराज, तथा उज्ज्वल संघ प्रभाविका पू. डॉ. धर्मशीलाजी महासतीजी के सानिध्य में भागवती दीक्षा अंगीकार की। पू. गुरुणीमैया के सानिध्यमें जो सीखने जानने को मिला वह मेरे श्रामण्यमय जीवन के लिए एक वरदान सिद्ध हुआ। पू. गुरुणीमैया की कृपादृष्टि से मैं संयम पथपर उत्तरोत्तर आगे बढ़ती रही । एक साधु या साध्वी के जीवन में संयम का सर्वोपरि स्थान है। उनके साथ यदि सद्विद्या का संयोग बनता है तो संयम और अधिक प्रोज्ज्वल और प्रशस्त होता जाता है। मैंने मेरी गुरु बहना पू. डॉ. धर्मशीलाजी महासतीजी के निर्देशन और मार्गदर्शन में अपना अध्ययन गतिशील रखा। संस्कृत प्राकृत में रुचि बढ़ती गई । पूना विश्वविद्यालय से मैने प्राकृतमें एम. ए. फस्ट क्लास में उत्तीर्ण किया। यद्यपि एक जैन साध्वी के लिए इन लौकिक परीक्षाओं का कोई महत्त्व नहीं हैं किंतु परीक्षाओं के माध्यम से अध्ययन करने में समीचीनता और सुव्यवस्था रहती है। एम. ए. होने के बाद मैने निश्चय किया कि - यदि भविष्यमें पीएच.डी. करने की संधी मिली तो मैं 'नवकार' मंत्र पर ही पीएच.डी. करूँगी। नवकार मंत्र कहने की प्रणाली बचपनसे ही चालु होती है। जैन धर्म में बचपनसेही नवकार मंत्र सीखाने की प्रथा है। छोटे- बच्चे से लेकर युवक, वृद्ध सभी नवकार मंत्र का जाप करते हैं। मुझे बचपनसे ही नवकार मंत्र पर दृढ़ श्रद्धा थी। मेरी गुरुबहन प्रखर व्याख्याता, पू. डॉ. धर्मशीलाजी महाराज ने 'नमो सिद्धाण पद: समीक्षात्मक परिशीलन' इस विषय पर ६०० पन्ने का ग्रंथ लिखा । यह देखकर मेरे मनमें विचार आया कि - मैं भी पीएच.डी. का विषय 'नवकार मंत्र' क्यों न लूँ ? मेरी गुरुबहन पू. डॉ. धर्मशीलाजी महाराज ने भी मुझे प्ररेणा दी। इसलिए मैने मेरे शोध प्रबंध का विषय 'जैन धर्म के नवकार मंत्र में णमो लोए सव्व साहूणं' इस पदका समीक्षात्मक समालोचन यह विषय मैंने चुना। पूना विश्व विद्यालयने और मेरे मार्गदर्शक डॉ. ज. र. जोशी इन्होने भी यह विषय लेने की मुझे अनुमति दी । नवकार मंत्र के विषय में लिखने की जब मुझे अनुमति मिली, तब मुझे अत्यंत आनंद हुआ। क्योंकि मुझे मेरे मन पसंद का विषय मिल गया। नवकार मंत्र के विषय में प्राकृत, संस्कृत, हिंदी, गुजराती, मराठी, इंग्लिश इ. भाषाओं में जो लेखन मिला, किताबे मिली, उसका रसास्वाद लेकर तात्विक विचारोंका, समीक्षात्मक अध्ययन करने का मैने निर्णय किया।
SR No.002297
Book TitleJain Dharm ke Navkar Mantra me Namo Loe Savva Sahunam Is Pad ka Samikshatmak Samalochan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharitrasheelashreeji
PublisherSanskrit Bhasha Vibhag
Publication Year2006
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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