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जैन साधु चर्या में समर्पित जीवनमें वीतराग प्रभुकी आज्ञामें रहकर आचार धर्म का पालन करते संयम और वैराग्य को उत्तरोत्तर विशुद्ध करना, मोक्षमार्ग की उपासना करना, वैसेही स्वपर कल्याण की प्रवृत्ति का विकास करना, यही मेरा अनिवार्य धर्म है। इसलिए नवकार मंत्र का और साधुपद का विस्तृत अभ्यास करने का मेरा मनोरथ दृढ़ हुआ। मेरी गुरुबहना पू. डॉ. धर्मशीलाजी महाराज की असीम कृपासे ज्ञानवृद्धिके लिए सभी सुविधा मुझे सहजता से प्राप्त हुई। गुरुणीमैया के आशीर्वाद से और जैन संघोंके सहकार्य से अभ्यासमें मेरा उत्साह उत्तरोत्तर बढ़ता गया।
विषय निश्चित होने के बाद सर्व प्रथम और जैन आगम साहित्यमें नवकार मंत्र के विषय में और साधु के विषयमें जो विवेचन आया है उसका संशोधन शुरू किया। उसमें अंग, उपांग, मूल, छेद, प्रकीर्णक आदि आगम ग्रंथ और उसके आधार पर प्राकृत, संस्कृत तथा हिंदी, गुजराती, मराठी आदि भाषाओंमें रचा हुआ साहित्य का अध्ययन किया। उसमें से कुछ ग्रंथों के नाम निम्नलिखित हैं।
जैनों के आचारांग आदि बत्तीस आगम । तत्वार्थ सूत्र और प्रशमरति प्रकरण - आ. उमास्वाती बृहद् द्रव्य संग्रह - टीका - श्री ब्रह्मदेव - नेमीचंद्र सिद्धांत देव, भगवती आराधना - आचार्य शिवार्य , योगशास्त्र - आ. हेमचंद्र ज्ञानार्णव-आचार्य शुभचंद्र एसो पंच नमोकारो - आ. महाप्रज्ञ, त्रैलोक्य दीपक - महामंत्राधिराज - भद्रंकर विजयजी, नमो सिद्धाणं पद समीक्षात्मक परिशलीन - साध्वी डॉ. धर्मशीलाजी महाराज, जीवननी सर्वश्रेष्ठ कला श्री नवकार - बाबुभाई कडीवाला मंगलमंत्र णमोकार एक अनुचिंतन - डॉ. नेमिचंद्र शास्त्री, तीर्थंकर - णमोकार मंत्र विशेषांक भाग - १-२, अनुत्प्रेक्षा नुं अमृत - श्री भद्रंकर विजयजी गणिवर, नमस्कार चिंतामणि-मुनिश्री कुंदकुंद विजयजी महाराज, नमस्कार महिमा - श्री विजय लक्ष्मणसुरिजी महाराज, नमोक्कार अनुप्पेहा - श्री उमेश मुनि अणु, अभिधान राजेंद्रकोश भाग - १-७- आ. श्री. राजेंद्र सुरिजी, जैन सिद्धांत कोश - भाग - १-४- क्षु. जिनेंद्र वर्णी, षट् खंडागम - फूलचंद सिद्धांत शास्त्री आदि |
इसके अतिरिक्त अनेक आचार्य, मुनि, विद्वानों की रचनाओं का अनुसंधानात्मक दृष्टि से अध्ययन किया । नवकार मंत्र तथा साधु पद के संबंध जो - जो सामग्री प्राप्त हुई, उसका यथास्थान संयोजित करने का मैने प्रयत्न किया है।
विद्या और साधना किसी भी धर्म या संप्रदाय की मर्यादामें बंधी हुई नहीं होती है। वह तो सर्वव्यापी, सर्वग्राही और सर्वोपयोगी उपक्रम है। उसको विविध परंपरासे संलग्न ज्ञानीजन और साधक गण समृद्ध करते हैं।