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________________ यह छह खंडोंमें विभक्त है, इसलिये इन्हें षट्खंडागम कहा जाता है। दिगंबर परंपरामें यह आगमों के रुपमें मान्य है । ९० षट्खंडागम पर व्याख्या साहित्यः षट्खंडागम दिगंबर परंपरामें सर्वमान्य ग्रंथ है । समय समय पर अनेक विद्वानोने इन पर टीकायें लिखी । लगभग दूसरी शताब्दिमें आचार्य कुंदकुंद ने इसपर परिकर्म नामक टीका की रचना की । तीसरी शताब्दि में आचार्य श्यामकुंड़ने पद्धति नामक टीका लिखी । चौथी शताब्दीमें आचार्य तुम्बूलूर ने चूड़ामणि नामक टीका रची। पांचवी शताब्दिमें श्रीसमंत भद्र स्वामी टीका की रचना की। यह क्रम आगे भी चलता रहा। छठ्ठी शताब्दी में बप्पदेव गुरुने व्याख्या प्रज्ञप्ति नामक टीका लिखी । ये बड़े दुःखका विषय है कि ये सभी टीकायें लुप्त हो गई हैं । इनमें से इस समय कोई भी टीका प्राप्त नहीं है । केवल उनका उल्लेख हुआ है। 1 धवला की रचना : षट्खंडागम पर आचार्य वीरसेन द्वारा रचित धवलाटीका बहुत प्रसिद्ध है । वह इस समय उपलब्ध है । वीरसेन के गुरु का नाम आचार्य नंदी था । इनके शिष्य जिनसेन थे । जिन्होने आदि पुराण की रचना की । A धवला टीका चूर्णियों की तरह संस्कृत प्राकृत मिश्रित है । यह बहत्तर हजार श्लोक प्रमाण है । इसकी प्रशस्तिमें टीकाकारने लिखा है कि यह सन ८१६ में इस टीका का लेखन संपन्न हुआ। धवलाकार आचार्य वीरसेन बहुश्रुत विद्वान थे। टीकाके अध्ययनसे पता चलता है कि उन्होने दिगंबर तथा श्वेतांबर के आचार्यद्वारा लिखे गये साहित्यका गहन अध्ययन किया था । षट्खंडागम में निरुपित कर्म सिद्धांत आदि विविध विषयोंका अत्यंत सूक्ष्म गंभीर और विस्तृत विश्लेषण है 1 कषाय पाहूड (कषाय प्राभृत) : गिरनार पर्वत की चंद्रगुफामें ध्यान करनेवाले आचार्य धरसेन के समय के आसपास गुणधर नामक एक और आचार्य हुए। उनको भी द्वादशांग श्रुतका कुछ ज्ञान था । उन्होने कषाय पाहू के नाम से दूसरे सिद्धांत ग्रंथकी रचना की । - आचार्य वीरसेनने इस पर भी टीका लिखना शुरू किया किंतु वे २०,००० (बीस हजार) श्लोक प्रमाण टीका ही लिख पाये थे कि इसी बीच वे दिवंगत हो गये । उनके शिष्य आचार्य जिनसेनने बाकी की टीका पूर्ण की। यह टीका जय धवला के नामसे प्रसिद्ध है । यह - (५५)
SR No.002297
Book TitleJain Dharm ke Navkar Mantra me Namo Loe Savva Sahunam Is Pad ka Samikshatmak Samalochan Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorCharitrasheelashreeji
PublisherSanskrit Bhasha Vibhag
Publication Year2006
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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